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________________ आलोचना क्या, क्यों और कब?...99 मर्यादा के अनुसार पाप की आलोचना करने का प्ररूपण किया तब पुष्पचूला ने सर्वजनों के समक्ष सम्यक आलोचना की एवं निरतिचार चारित्र का पालन कर उसी भव में मोक्ष गई। साध्वी मृगावती ने छोटी सी भूल की आलोचना करते-करते अर्धरात्रि में केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। हनुमान की माता अंजना सती ने पूर्वभव में ईर्ष्यावश होकर 22 प्रहर तक प्रभु की मूर्ति छिपायी थी, उस दुष्कृत्य की उसने आलोचना नहीं की। इसी कारण अंजना के भव में बाईस वर्ष तक पति विरह सहन करना पड़ा। श्रीपाल राजा ने पूर्वभव में कुतूहलवश मुनि को पानी में डुबोया, कोढ़ी कहा, उन्हें किन्तु उसकी आलोचना नहीं की। तद्फलरूप इस भव में कोढ़ रोग से ग्रसित हुए और उन्हें समुद्र में गिरना पड़ा। जैसे आलोचना नहीं करने वाला व्यक्ति कुकर्मों के कटुक फल भोगता है वैसे ही दुष्कृत्यों की आलोचना करते हुए माया आदि दोष रह जायें तो भी संसार परिभ्रमण बढ़ जाता है। शास्त्रों में वर्णन आता है कि लक्ष्मणा नाम की एक राजकुमारी चैवरी में विधवा हो गई। उसने चारित्र धर्म अंगीकार कर लिया। एकदा उद्यान में कायोत्सर्ग करते हुए चकवा-चकवी की संभोग क्रिया देखकर लक्ष्मणा साध्वी ने विचार किया–परमात्मा ने संभोग की आज्ञा क्यों नहीं दी? भगवान् अवेदी है, वेदयुक्त जीव की वेदना कैसे जान सकते हैं? ऐसे विचार आने पर पश्चात्ताप भी हआ। तुरन्त आलोचनार्थ वहाँ से प्रस्थान किया। आलोचना करते समय किंचित माया का सेवन करते हुए 'मैंने ऐसा विचार किया' यह वाक्य न कहकर प्रतिरूप में पूछा कि 'किसी को अमुक प्रकार का विचार आये तो उसका प्रायश्चित्त क्या?' इस तरह प्रायश्चित्त जानने के बाद उसने 50 वर्ष तक घोर तपश्चर्या की। तदुपरान्त उसकी पाप शुद्धि नहीं हुई और वह अब भी संसार में परिभ्रमण कर रही है। लक्ष्मणा साध्वी को याद करके यह निश्चित्त कर लेना चाहिए कि माया पूर्वक आलोचना करने वाला अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करता है अत: माया, कपट या अन्य किसी भी निदान आदि के भाव रहित आलोचना की जानी चाहिए।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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