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जैन वाङ्मय में प्रायश्चित्त के प्रकार एवं उपभेद...45
45. वही, 6/345 46. वही, 6/340, निशीथचूर्णि 92 47. (क) अभिधानराजेन्द्रकोश, 5/135, 361
(ख) व्यवहारसूत्र वृत्ति-उद्देशक पहला 48. (क) अभिधानराजेन्द्रकोश, 6/426, 370
(ख) बृहत्कल्पभाष्य 4943
(ग) निशीथभाष्य, 363 49. अभिधानराजेन्द्रकोश, 5/136 50. वही, 6/915, 916 51. (क) अभिधानराजेन्द्रकोश, 7/778, 2/421, 5/1621,
(ख) व्यवहारभाष्य पीठिका, 184
(ग) ओघनियुक्ति, 57 52. (क) अभिधानराजेन्द्रकोश, 5/136, 7/120, 121, 122
(ख) स्थानांग, 4/1 53. अभिधानराजेन्द्रकोश, 2/417, 418, 419, 5/135; 136 54. वही, 5/722, 723, 5/135; 136 55. श्री भिक्षु आगम विषय कोश, भा. 2, पृ. 405 56. आचारदिनकर, भा. 2, पृ. 242-244 57. उद्धृत- प्रायश्चित्तविधि, उपाध्याय क्षमाकल्याण, पृ. 9 58. वही, पृ. 9 59. वही, पृ. 9 60. गुरुओ गुरुअतराओ, अहागुरुओ य होइ ववहारो। लहुओ लहुयतराओ, अहालहू होइ ववहारो॥
लहुसो लहुसतराओ, अहालहूसो अ होइ ववहारो।
एतेसिं पच्छित्तं, वुच्छामि अहाणपुवीए । गुरुगो य होइ मासो, गुरुगतरागो भवे चउम्मासो। अहगुरुगो छम्मासो, गुरुगे पक्खम्मि पडिवत्ती ।
तीसा य पण्णवीसा, वीसा वि य होइ लहुयपक्खम्मि। पन्नरस दस य पंच य, अहालहुसगम्मि सुद्धो वा॥