________________
14...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक 2. प्राय: सर्व तपस्याओं में एक समय तथा नवपद, बीशस्थानक आदि कुछ
तपों में तीन समय देववंदन करना चाहिए। 3. अरिहन्त परमात्मा की पूजा करनी चाहिए। 4. यदि अनुकूलता हो तो वीतराग परमात्मा के तीन बार दर्शन करना
चाहिए। 5. सम्यक् ज्ञान की पूजा-भक्ति करना चाहिए। 6. उपवास आदि का प्रत्याख्यान विधिपूर्वक ग्रहण और उसे प्रतिपूर्ण करना
चाहिए। 7. यदि नगर में गुरु भगवन्त विराजमान हो तो उनके मुख से प्रत्याख्यान
लेना चाहिए। 8. प्रत्येक तप में बतलाये अनुसार 20 माला गिननी चाहिए। 9. प्रत्येक तप में निर्धारित संख्या के अनुसार खमासमण और प्रदक्षिणा देनी
चाहिए। 10. प्रत्येक तप में निश्चित संख्या के अनुसार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग
करना चाहिए। 11. तपस्या के दिन विशेष रूप से ध्यान-स्वाध्याय आदि करना चाहिए। 12. इन दिनों ब्रह्मचर्य का पालन एवं भूमि शयन करना चाहिए। 13. साधु-साध्वी की वैयावृत्य करना चाहिए। 14. तप पारणे के दिन में यथाशक्ति साधर्मीवात्सल्य अथवा अधिक न बन
सके तो समान तप करने वाले एक, दो, चार आदि श्रावक या
श्राविकाओं को यथाशक्ति भोजन करवाना चाहिए। 15. प्रत्येक तप में अचित्त पानी ही उपयोग में लेना चाहिए। 16. प्रत्येक तप की रात्रि में चतुर्विध आहार का त्याग (चउव्विहार का
प्रत्याख्यान) करना चाहिए। 17. दीर्घ अवधि वाले या कठिन तप के अन्त या मध्य में उसका महोत्सव
पूर्वक उद्यापन करना चाहिए। सामान्य तपों में बताये अनुसार उद्यापन
करना चाहिए। 18. कोई भी तप सांसारिक कामना या इच्छापूर्ति से नहीं करना चाहिए। 19. तपस्या शुरू करने के मुहूर्त, विधि-विधान, तिथि-मिति आदि के सम्बन्ध
में साधु-साध्वी से समझकर करना अधिक लाभदायक है।