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________________ 12...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक में जैसी प्रवृत्ति हो वैसा करना अधिक उचित है क्योंकि परम्परागत समाचारी का श्रद्धापूर्वक पालन करने से चित्त सुस्थिर एवं असंदिग्ध रहता है और उसी में आराधना की सफलता है। ____7. कुछ परम्पराओं में मलमास, अधिक मास, चैत्र-आसोज की नवपद ओली- इन दिनों में बीशस्थानक आदि कुछ विशिष्ट तपों की आराधना का निषेध किया गया है उसमें किसी तरह का विवाद या तर्क नहीं करते हुए स्वपरम्परा का अनुसरण करना अधिक लाभदायी है। इस निषेध का मूलभूत कारण आज भी अस्पष्ट है। ____8.खरतर परम्परा में चतुर्दशी का क्षय होने पर जो चौदस तप कर रहा हो उसके लिए उपवास तो उसी दिन, किन्तु पाक्षिक प्रतिक्रमण अमावस्या या पूनम के दिन करने की सामाचारी है। परन्तु कई लोग अपनी सुविधा के अनुसार क्षय तिथि के दिन भी पाक्षिक प्रतिक्रमण कर लेते हैं जो अनुचित है। शास्त्रों में गीतार्थ आचरणा (आचार्य या योग्य मुनि द्वारा प्रवर्तित परम्परा) अनुलंघनीय कही गयी है। प्रत्याख्यान पारने की विधि उपवास वगैरह में पानी पीना हो, एकासना वगैरह में भोजन करना हो अथवा किसी तप का पारणा करना हो, तो उसके पूर्व निम्न विधि करनी चाहिए। आचार्य जिनप्रभसूरि (14वीं शती) ने इस विधि का उल्लेख किया है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्पराओं की वर्तमान सामाचारी में प्राय: यह विधि इस प्रकार प्रचलित है ईर्यापथ प्रतिक्रमण- आहार-पानी ग्रहण करने से पहले स्थापनाचार्यजी के समक्ष एक खमासमण देकर इरियावहियं०, तस्सउत्तरी०, अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक लोगस्ससूत्र अथवा चार नमस्कारमन्त्र का स्मरण (कायोत्सर्ग) करे। फिर कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहे। प्रत्याख्यान पारण विधि- फिर एक खमासमण देकर "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! प्रत्याख्यान पारने की मुँहपत्ति पडिलेहुँ?" ऐसा आदेश लेकर 'इच्छं' शब्द पूर्वक मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करे। फिर एक खमासमण देकर बोले- "इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! पच्चक्खाण पारूं?" गुरु कहे- "यथाशक्ति"। गुरु न हो तो स्वयं ही
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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