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________________ तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक ... xi (iii) काल सापेक्ष (iv) आहार सापेक्ष । अध्याय - 3 : तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व 103-166 1. तप साधना की आवश्यकता क्यों? 2. तप अन्तराय कर्म का उदय नहीं 3. तपस्या का फल 4. तप साधना का उद्देश्य 5. तप साधना के प्रत्यक्ष लाभ 6. तप और आसन 7. तप और प्राणायाम 8. तप और ध्यान 9. विविध दृष्टियों से तप साधना की मूल्यवत्ता • • जैन धर्म की दृष्टि से • तीर्थंकर की दृष्टि से • ग्रन्थों की दृष्टि से • आयुर्वेद की दृष्टि से • प्राकृतिक चिकित्सा की दृष्टि से • वैज्ञानिक दृष्टि से • श्रुतज्ञान आराधना की दृष्टि से • उत्कृष्ट मंगल की दृष्टि से कर्मक्षय की दृष्टि से • इन्द्रिय नियंत्रण की दृष्टि से • मनोबल वर्धन की दृष्टि से • गृहस्थ धर्म की दृष्टि से • भौतिक सुख-समृद्धियों की दृष्टि से • देव सान्निध्य की दृष्टि से • आध्यात्मिक लब्धियों एवं सिद्धियों की दृष्टि से • वैदिक धर्म की दृष्टि से • बौद्ध धर्म की दृष्टि से • व्यावहारिक दृष्टि से • वर्तमान युग की दृष्टि से • विविध पहलुओं की दृष्टि से । 10. तप विधियों के रहस्य • तप काल में बाह्य कार्यों से निवृत्ति आवश्यक क्यों ? • तपस्या में साथिया, कायोत्सर्ग, जाप आदि क्यों ? • तपस्या में देववन्दन कब और क्यों ? 11. आधुनिक युग में बढ़ता आडम्बर और प्रदर्शन कितना प्रासंगिक ? 12. बाह्य तप अधिक आवश्यक है या आभ्यन्तर तप ? अध्याय - 4: जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तप - विधियाँ 1. श्वेताम्बर ग्रन्थों में वर्णित तपश्चर्या सूची 167-194 (i) अन्तकृतदशा सूत्र में उल्लिखित तप (ii) उत्तराध्ययन सूत्र में निर्दिष्ट तप (iii) पंचाशक प्रकरण में उपदिष्ट तप (iv) प्रवचनसारोद्धार में
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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