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232...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक या अधिक स्थानों का समुचित रूप से स्पर्श करता है वह तीर्थङ्कर गोत्र बांधता है और भविष्य में निश्चित रूप से तीर्थङ्कर बनता है। इन बीसस्थानक पदों में भी तप के दर्शन होते हैं। बीस पदों के नाम इस प्रकार हैं1. अरिहन्त पद 2. सिद्ध पद 3. प्रवचन पद 4. आचार्य पद 5. स्थविर पद 6. उपाध्याय पद 7. साधु पद 8. ज्ञान पद 9. दर्शन पद । 10. विनय पद 11. चारित्र पद 12. ब्रह्मचर्य पद 13. क्रिया पद 14. तप पद 15. गौतम पद 16. जिन पद 17. संयम पद 18. अभिनव ज्ञान 19. श्रुत पद 20. तीर्थ पद।
इसमें तप पद की ओली उपवास के पारणे आयंबिल करते हुए की जाती है।
प्रत्येक पर्व का उद्यापन तप द्वारा ही किया जाता है। इससे यह निर्णीत है कि जैन धर्म में तप का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ____ यदि तपोयोग का समीक्षात्मक अध्ययन करें तो निःसन्देह कहा जा सकता है कि यह साधना भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं में किसी न किसी रूप में आज भी परिलक्षित होती है। कई आरामवादी एवं आहार लोलुपी यह तर्क देते हैं कि जिन्दगी मिली है तो "खाओ-पीयो, ऐश करो" तप-त्याग करने से क्या मिलेगा? यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करें तो तप मनुष्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यह इच्छाओं को वश करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। तप का अभिप्राय मात्र भोजन नियन्त्रण ही नहीं, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक नियन्त्रण से है और इन पर नियन्त्रण करने से अनुपम मानसिक शान्ति की उपलब्धि होती है। आहार का सर्वाधिक प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है अत: आहार संयम के हेतु से तप करने पर मात्र मन ही नहीं, शरीर भी स्वस्थ रहता है।
वैज्ञानिक शोधों के अनुसार शरीर के सभी अंगों में प्राण ऊर्जा का प्रवाह प्रत्येक समय एक समान नहीं रहता, अत: प्रत्येक समय शरीर से