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भारतीय परम्पराओं में प्रचलित व्रतों ( तपों) का सामान्य स्वरूप...211 परिधानों में सज-धजकर बड़ी संख्या में मस्जिदों तथा ईदगाहों में जाते हैं और वहाँ ईद की नमाज़ अदा करते हैं। आज के दिन हिन्दू तथा मुसलमान आपसी भाईचारे की भावना की अभिवृद्धि के उद्देश्य से एक-दूसरे को गले लगाते हैं। इस अवसर पर मुस्लिम नारियाँ सुन्दर वस्त्रों तथा यथा सामर्थ्य क़ीमती आभूषणों से सुसज्जित होकर एक-दूसरे के घर पहुँचकर शुभकामनाएँ व्यक्त करती हैं। आज के दिन का प्रमुख आकर्षण घरों में तैयार की गयी अति स्वादिष्ट 'सेवइयाँ' रहती हैं।
ईद-उल-जुहा - यह पर्व मुस्लिम महीने 'जिल-हिज्ज' की दसवीं तिथि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व हज़रत इब्राहिम की कठोरतम परीक्षा के यादगार में सर्वत्र मनाया जाता है। एक बार उन्हें स्वप्न में सर्व शक्तिमान् अल्लाह से आदेश मिला कि वे अपने सबसे प्रिय पुत्र इस्माइल की बलि चढ़ाये। इब्राहिम के लिए यह कठिन अग्नि परीक्षा थी। अल्लाह में दृढ़ विश्वास रखने वाले हज़रत इब्राहिम ने इसके लिए अपने पुत्र इस्माइल से पूछा
और उसके तत्काल राज़ी हो जाने पर उसकी बलि चढ़ाने को तैयार हो गये। हज़रत इब्राहिम ने अपनी तलवार ज्यों ही बेटे की गर्दन पर रखी, उसी समय सर्वव्यापी अल्लाह ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और कहा कि मैं तो केवल अल्लाह के प्रति आपकी भक्ति तथा विश्वास और उनके द्वारा आपको प्रदत्त आदेश की परीक्षा ले रहा था। .
इस दिन लोग प्रातःकाल बिना नाश्ता किये नमाज़ के लिए जाते हैं। आज के दिन मुस्लिम बन्धु एक-दूसरे को अपने घर भोजन के लिए आमन्त्रित करते हैं।
शब-ए-बरात - यह पर्व प्रतिवर्ष मुस्लिम महीने - 'शाबान' की पन्द्रहवीं रात को पूरे देश में मनाया जाता है। विश्वास के साथ ऐसा माना जाता है कि महात्मा मोहम्मद साहब ने इस दिन को उपवास तथा प्रार्थना के लिए निर्धारित किया है, क्योंकि आज की रात सर्व व्यापक अल्लाह सभी लोगों की नेकी तथा बदी का हिसाब तैयार करते हैं।
ऐसी धारणा है कि प्रत्येक व्यक्ति के अच्छे तथा बुरे कार्यों की निगरानी के लिए अल्लाह ने दो फ़रिश्ते नियुक्त किये हैं, जो आदमी के दाहिने तथा बायें कन्धे पर सदा विराजमान रहते हैं। दाहिने कन्धे पर 'केरावन' तथा बायें कन्धे