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xxiv...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक एक बृहद् कार्य को साकार रूप देने जा रही है। प्रस्तुत कृति में जैन परम्परा की सुविख्यात श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा तथा बौद्ध, वैदिक आदि परम्पराओं का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन कर शोध कार्य को सर्वजन उपादेय बनाया है। ___ साध्वीवर्या की यह प्रस्तुति युवा वर्ग में तप के महत्त्व एवं आवश्यकता को स्पष्ट करते हए उन्हें तप मार्ग पर आगे बढ़ने में निःसन्देह सहायक बनेगी ऐसी आशा है। मैं साध्वीजी की गहन अध्ययन निष्ठा एवं संशोधक वृत्ति की सहृदय अनुमोदना करते हुए उन्हें साधुवाद देती हूँ।
शुभाकांक्षिणी आर्या शशिप्रभा श्री