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तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...165 53. आमोसहि विप्पोसहि, खेलोसहि जल्लओसही चेव। सव्वोसहि संभिन्ने, ओहीरिउ विउलमइलद्धी ।
चारण आसीविस, केवलिय गणहारिणो य पुव्वधरा ।
अरहंत चक्कवट्टी, बलदेवा वासुदेवा वायं । खीरमहसप्पिआसव, कोट्ठयबुद्धी पयाणुसारी य। तह बीयबुद्धितेयग, आहारग सीयलेसा य ॥
वेउविदेहलद्धी, अक्खीणमहाणसी पुलाया य । परिणामतववसेणं, एमाई हुंति लद्धीओ ॥
प्रवचनसारोद्धार, 270/1492-1495 54. सर्वतः सर्वैरपि शरीरदेशैः शृणोति स संभिन्नश्रोताः।
आवश्यकचूर्णि, अ. 1 55. जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 74-75 56. भगवतीसूत्र, 20/9/1 57. वही, 20/9/2,6 58. तिलोयपण्णत्ती, 1/4/1034-1048, पृ. 279-280 59. चत्तारि जाइ आसीविसा बिच्छुयजाई...
स्थानांगसूत्र, 4/4/514 60. सोलसराय सहस्सा, सव्व बलेणं तु संकलनिबद्धं । अंछंति वासुदेवं, अगडतडम्मिठियं संतं ।।
__घेत्तुण संकलं सो, वामहत्थेण अंछमाणाणं ।
@जिज्ज बलिं पिज्ज व, महुमहणं ते न चाएंति ॥ जं केसवस्स उ बलं तं, दुगुणं होइ चक्कवट्टिस्स। तत्तो बला बलवग्गा, अपरिमियबला जिणवरिंदा ।
आवश्यकनियुक्ति, भा. 1/71, 72, 75 61. करोड़ चक्रवर्तियों का बल एक देव में, करोड़ देवों का बल एक इन्द्र में,
अनन्त इन्द्रों का बल तीर्थङ्कर की कनिष्ठ अंगुली में होता है। 62. (क) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, वक्षस्कार 2
(ख) प्रवचनसारोद्धार टीका, द्वार 270 (ग) दूध को मधुर एवं स्वादिष्ट बनाने की ऐसी ही एक कथा बौद्ध ग्रन्थों में भी प्रसिद्ध है। सुजाता नाम की उपासिका थी। वह एक हजार गायों का दूध पाँच सौ गायों को पिलाती, पाँच सौ गायों का ढाई सौ को, इसी क्रम से सोलह गायों का दूध आठ गायों को, आठ का चार को, चार का दो गायों को दूध पिलाकर उसके दूध की खीर बनाती है। उस खीर की भिक्षा वह बुद्ध को देती है।