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________________ तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...161 चाहिए। चाहे धनाढ्य लोग हों या सामान्य वर्गीजन। इसके अतिरिक्त किसी को अधिक करना भी हो तो वह साधर्मिक उत्थान, शिक्षा, जीवदया, शासन प्रभावना के कार्यों में अपनी सम्पत्ति का सत्प्रयोग करें। आज पर्युषण जैसे दिनों में भी शासन माता के गीतों को लेकर बाहर की अभक्ष्य वस्तुएँ नाश्ते में रख दी जाती हैं, साधर्मी वात्सल्य में भी भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक नहीं रखा जाता है। त्याग का अभिनन्दन तो तप-त्याग से ही होना चाहिए, खाना-पीना, सोना-चांदी से कैसा अभिनन्दन? करना है तो उनके निमित्त से जीवन में कोई सत नियम स्वीकार किया जाए तथा प्रत्येक लेन-देन की एक सीमा बांध दी जाए। यदि हो सके तो कम से कम परिग्रह बढ़ाने सम्बन्धी त्याग ही होना चाहिए। वरन शाता पछने वालों के सामने तप-त्याग की चर्चा तो कम, किन्तु किसने क्या दिया? कितना दिया? बस यही चर्चा होती है, जिससे तप करके कर्मों की निर्जरा नहीं प्रत्युत कर्म बन्धन बढ़ता है। अत: तप का अभिनन्दन-अनुमोदन तो अवश्य होना चाहिए, पर उसके निमित्त ऐसी परम्पराएँ प्रचलन में न आएं, जिससे तप का मूल्य घटे या उसके प्रति लोगों में हीन भावना उत्पन्न हो। वर्तमान में बाह्य एवं आभ्यन्तर तप को लेकर भी कई प्रश्न उठाये जाते हैं। बाह्य तप अधिक आवश्यक है या आभ्यन्तर तप? लोक व्यवहार में अधिकतम लोग उपवास, एकासना आदि को ही तप के रूप में करते हैं और मानते हैं शेष को वह महत्त्व नहीं, जबकि उनकी साधना भी उतनी ही कठिन है। इस तप में तो सिर्फ स्व-शरीर ही तपता है, परन्तु आभ्यन्तर तप में अहंकार, कषाय आदि तप कर गलते हैं, अत: सभी का अपना स्थान है जिसका जैसा सामर्थ्य हो, उसे वैसी आराधना करनी चाहिए। जहाँ बाह्य तप इन्द्रियों के प्रति आसक्ति, स्वाद लोलुपता, शरीर राग को कम करता है वहीं आभ्यन्तर तप आन्तरिक गुणों में वृद्धि करते हैं, आत्म निर्मलता को बढ़ाते हैं तथा विनय, मार्दव, आर्जव आदि धर्म में भी वृद्धि करते हैं। अत: दोनों की साधना साथ ही होनी चाहिए। कुछ लोग यह प्रश्न उठाते हैं कि यदि आभ्यन्तर तप से शुद्धि हो सकती है तो फिर बाह्य तप की क्या आवश्यकता है ? जैसा कि पूर्व में स्पष्ट कर चुके हैं कि दोनों तपों का अपना स्वतन्त्र मूल्य
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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