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________________ तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...139 स्वर्ण के मूल्य वाली साधना पानी के मोल बिक जाती है। स्वरूपत: तप शक्ति के सामने देवत्व शक्ति नगण्य है। देवी-देवता हमेशा तप शक्ति के अधीन रहते हैं। इसीलिए तो कहा जाता है कि दीर्घ तपस्या करने वाले साधकों में अट्ठम तप के बाद देवताओं का वास होता है, शासन रक्षक देवी-देवताओं का बल होता है। ___यह अनुभूत सत्य है और व्यवहार में हम देखते भी हैं कि कदाच खुराक से अल्प भोजन करना शुरू कर दें अथवा स्वास्थ्य गड़बड़ होने से पर्याप्त मात्रा में आहार न ले पायें तो दो-चार दिन में ही कमजोरी महसूस होने लगती है। जबकि आठ, ग्यारह, सोलह, तीस आदि दिनों तक कण मात्र भी आहार का सेवन नहीं करने वाले अधिकांश तपस्वी आराम से चलते हैं, आराधना करते हैं, घरेलू कार्य भी कर लेते हैं, ऐसा क्यों? इसका जवाब यही है कि उनमें सम्यग द्रष्टि देवों का बल रहता है और पारणा करते ही वह सत्त्व गायब हो जाता है। शारीरिक धर्म के अनुसार तो खुराक मिलते ही शरीर में अधिक शक्ति का संचार होना चाहिए, किन्तु तपस्या के पारणे में कुछ विपरीत होता है। फिर शनै:-शनैः शरीर स्वाभाविक स्थिति में आता है तो समझना यही है कि तपस्या से देवता भी आधीन हो जाते हैं। हम जिस देवगति को पाने के लिए लालायित हैं वह देवत्व तपस्या द्वारा मानव योनि में भी उपलब्ध किया जा सकता है। आध्यात्मिक लब्धियों एवं सिद्धियों की दृष्टि से- तप केवल भौतिक सिद्धि और समृद्धि का प्रदाता ही नहीं, किन्तु वह अनन्त आध्यात्मिक समृद्धि का प्रदाता भी है। तप से भौतिक एवं आध्यात्मिक सर्व प्रकार की शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं। इस विराट् विश्व में जितनी भी शक्तियाँ हैं, विभूतियाँ हैं और लब्धियाँ हैं वे तप से सम्प्राप्त होती हैं। एतदर्थ ही एक आचार्य ने कहा है – “तपो मूलाहि सिद्धयः” समस्त सिद्धियाँ तप मूलक है। आचार्य नेमिचन्द्र ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि "परिणाम तव वसेणं, इमाई हुंति लद्धीओ।" - जितनी भी लब्धियाँ हैं वे तप से ही प्रगट होती हैं। तप करने से आत्मा में एक अद्भुत तेज का संचार होता है। प्रत्येक आत्मा अनन्त अक्षय शक्तियों का पिण्ड है उनमें कुछ शक्तियाँ, लब्धि, निधि एवं सिद्धि के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा जगत व्यवहार में उन शक्तियों की अपार महिमा भी है अत: तपोयोग के मूल्य को दर्शाने के लिए वह वर्णन निम्न प्रकार हैं।48
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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