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________________ 138...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक का ही प्रभाव होता है कि उसके चरणों में मानव तो क्या? अनन्त ऐश्वर्यवान्, असीम शक्ति के स्वामी देवता और इन्द्र भी झुकते हैं। वैदिक पुराणों में बहुत सी ऐसी कथाएँ आती हैं जिनमें बताया गया है कि अमुक तपस्वी के तपोबल से इन्द्र महाराज का सिंहासन कांप उठा। जैन शास्त्र भगवतीसूत्र47 में वर्णन आता है कि एक बार असुरों की राजधानी बलिचंचा नगरी का इन्द्र आयु पूर्ण कर गया। वहाँ दूसरा कोई इन्द्र उत्पन्न नहीं हुआ, तब असुर घबराने लगे - हम अनाथ हो गये हैं ? क्या करें? नये स्वामी को कहाँ से कैसे प्राप्त करें जो शत्रुओं से हमारा व हमारे राज्य का बचाव कर सके ? इसी चिन्ता में घूमते हुए असुरकुमारों की दृष्टि एक घोर बाल तपस्वी पर ठहरी। उस तपस्वी का नाम था तामली तापस। वह तापस वर्षों से बेले-बेले की तपस्या कर रहा था, उसमें तप पारणे के दिन इक्कीस बार धोया हुआ चावल का सत्त्वहीन पानी लेता था, इस तरह साठ हजार वर्ष तक उसने कठोर तप किया। उसका शरीर अत्यन्त जर्जर, किन्तु मुख मण्डल तपो तेज से दमक रहा था। असुरकुमारों ने तामली तापस को देखकर सोचा कि “यह बाल तपस्वी यदि हमारा स्वामी बनने का निदान (अभिग्रह) कर आयु पूर्ण करे तो हमें सचमुच एक महान तेजस्वी, शक्तिशाली स्वामी प्राप्त हो सकता है। तत्पश्चात अगणित असुरकुमार और असुरकुमारियाँ दिव्य रूप धारण कर उसके सामने आये। तपस्वी को प्रसन्न करने के उद्देश्य से बत्तीस प्रकार के नाटक, विविध संगीत आदि का प्रदर्शन करने लगे। अति विनम्रता के साथ वन्दना कर उनसे प्रार्थना करने लगे - हे महान् तपस्वी! हम पर दया करिये, हम अनाथ हैं, स्वामीहीन हैं, आप जैसे नाथ हमें प्राप्त हो जायें तो हम सब भली-भाँति आनन्दपूर्वक एवं सुरक्षित जीवन यापन कर सकते हैं। इसलिए आप हमारे सम्बन्ध में निदान करें और यहाँ से आयु पूर्ण कर हमारी बलिचंचा राजधानी का इन्द्र बनना स्वीकार करें। आगमकार कहते हैं कि असुरकुमारों की दीनता व विनय भरी प्रार्थना सुनकर भी तामली तापस ने उसे स्वीकार नहीं किया। वे अपने ध्यान में ही लीन रहे। फिर आयुष्य पूर्णकर ईशानकल्प (दूसरे देवलोक) में ईशानेन्द्र के रूप में जन्म लेते हैं। कहने का भावार्थ यह है कि तपोमय जीवन को देवता भी चाहते हैं तथा सच्चे तपस्वी कभी भी भौतिक सुख-समृद्धि के प्रलोभन में नहीं बहते, अन्यथा
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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