________________
134...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
प्रायः लोग समझते हैं कि तपस्या सन्त-साधुओं के लिए है। इससे हमारा क्या प्रयोजन है? किन्तु ऐसी बात नहीं है। मनुष्य मात्र के लिए छोटी-बड़ी तपस्या बहुत आवश्यक है। तप से मन को केन्द्रित करने की शक्ति प्राप्त होती है। जीवन में बड़े से बड़े कार्यों की सफलता के लिए इस शक्ति की अत्यन्त जरूरत है चाहे राजकार्य हो चाहे व्यापार अथवा कला और विज्ञान सम्बन्धी अन्य कार्य हों सभी के सम्पादन हेतु मनोयोग की उपयोगिता स्पष्ट ही है। मन को बलवान बनाना इसलिए भी आवश्यक है कि हमारे शरीर में सबसे अधिक और निरन्तर गतिशील रहने वाला मन है। इसकी क्रियाशक्ति पर सम्पूर्ण शरीर का व्यापार अवलम्बित है। हम यह भी कह सकते हैं कि तप एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिससे मन को स्फर्ति एवं बल मिलने के साथ-साथ शरीर के सब अंगों और आत्मा को भी बल मिलता है।44
गृहस्थ धर्म (गृहस्थ आचार) की दृष्टि से- जैन शास्त्रों में गृहस्थ के लिए भी तप का विधान किया गया है। पूर्वाचार्यों ने गृहस्थ के आवश्यक नियमों की चर्चा करते हुए उसमें तप आचरण को गृहस्थ धर्म के रूप में स्वीकार किया है, जैसा कि
कर्तव्या देवपूजा शुभगुरुवचनं, नित्यमाकर्णनीयं दानं देयं सुपात्रे प्रतिदिनममलं,पालनीयं च शीलम्। तप्यं शुद्धं स्वशक्त्या तप इह महती, भावना भावनीया
श्रद्धानामेव धर्मो जिनपतिगदितः, पूतनिर्वाणमार्गः।। प्रतिदिन वीतरागदेव की पूजा करना, सद्गुरु के वचन सुनना (उपदेश श्रवण करना), सुपात्र को दान देना, निर्मल शील का पालन करना, यथाशक्ति तप का आचरण करना और उदात्त भावनाओं का चिन्तन करना- यह जिनेश्वरों के द्वारा कहा गया निर्वाण मार्ग का गृहस्थ धर्म है।
किन्हीं ग्रन्थों में श्रावक धर्म की परिचर्चा करते हुए तप को आवश्यक बतलाया है, जैसा कि द्रष्टव्य है -
त्रैकाल्यं जिनपूजनं प्रतिदिनं, संघस्य सन्माननं स्वाध्यायो गुरुसेवनं च विधिना, दानं तथाऽऽवश्यकम्। शक्त्या च व्रतपालन वरतपो, ज्ञानस्य पाठस्तथा सैष श्रावकपुंगवस्य कथितो, धर्मो जिनेन्द्रागमे।।