________________
तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...127 पूर्व में कह चुके हैं कि नियमित अथवा अधिक मात्रा में भोजन करने से शरीर यन्त्रों को पचाने के लिए उतना ही श्रम करना होता है। जब उपवास के माध्यम से भोजन बन्द कर दिया जाता है तब शरीर, पाचन संस्थान आदि सभी को विश्रान्ति मिलती है, परिणामस्वरूप शरीर में जमा हुआ मल बाहर निकल जाता है।
डॉ. जे.एच. टिडेन के मतानुसार शरीर के दूषित पदार्थों की निकासी के लिए उपवास से बढ़कर दूसरी कोई चिकित्सा नहीं है, यही एक विशिष्ट और विश्वसनीय उपचार है।43 |
डॉ. फेलेक्स एस.एल. आसवाल्ड के मन्तव्यानुसार शरीर की भीतरी सफाई के लिए उपवास सबसे उत्तम तरीका है। वर्ष भर में केवल तीन दिन के उपवास से शरीर की सफाई करने और विषैले पदार्थों को नष्ट करने में जितनी सफलता पा सकते हैं उतनी रक्तशोधक कड़वी औषधियों की सैकड़ों बोतलों के सेवन से भी नहीं मिल सकती।
_शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के प्रत्येक अवयव में नित नये कोशों का निर्माण होता है। जितना अधिक शारीरिक श्रम किया जाता है, श्रम के अनुपात से कोश नष्ट होने की गति में भी अभिवृद्धि हो जाती है। नियमत: बाल्यकाल से कोशों में अभिवृद्धि होती है तथा प्रौढ़ावस्था में कोशों की वृद्धि रुककर स्थिर हो जाती है। इसी तरह रुग्णावस्था में भी कोशों की मात्रा घटने लगती है जबकि उपवास द्वारा देह शुद्धि होने से कोशों की घटती मात्रा में कमी आ जाती है। ___ वास्तविकता यह है कि उपवास काल में शरीर में से चर्बी कोश की मात्रा अवश्य कम होती है, किन्त विभिन्न अवयवों को सञ्चालित करने की शक्ति बढ़ जाती है। इतना ही नहीं अतिरिक्त चर्बी दूर होने से शरीर में स्फूर्ति, मस्तिष्क में चिन्तन शक्ति और विचारों में स्फुरणाएँ बढ़ जाती हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों ने उपवास तप के सम्बन्ध में जो भी मन्तव्य प्रस्तुत किये हैं वह तप की मूल्यवत्ता के विषय में बहुत कम हैं। तीर्थङ्कर पुरुषों ने इससे कई गुना अधिक शारीरिक लाभों को शास्त्रीय भाषा में उपदिष्ट किया है। आज विज्ञान जिसे सिद्ध कर रहा है या अनुसन्धान प्रयोग से कुछ प्रत्यक्ष करके दर्शा रहा है केवलज्ञानियों की ज्ञान पर्याय में वह सब बिना प्रयोग के प्रत्यक्ष सिद्ध है। उन्हें किसी प्रयोगशाला की जरूरत नहीं रहती।