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________________ 120... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक है। इस विश्व में जितने भी श्रेष्ठ पद हैं उन्हें तप के द्वारा ही प्राप्त किया गया है। इस युग के आदिपुरुष, प्रथम तीर्थङ्कर भगवान ऋषभदेव ने एक हजार वर्ष तक कठोर तपश्चर्या करके केवलज्ञान प्राप्त किया। 29 शायद हम ऐसा मान लेते हैं कि महापुरुषों को सहज ही सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं किन्तु वैसा " न भूतो न भविष्यति । " भगवान महावीर ने भी साढ़े बारह वर्ष की उग्र तपस्या द्वारा ही केवलज्ञान को उपलब्ध किया। उनकी कठोर तप साधना का उल्लेख बौद्ध ग्रन्थों में भी किया गया है। वहाँ प्रभु महावीर को " दीघतपस्सी" कहा गया है। आचारांग, आवश्यकनिर्युक्ति, आवश्यकचूर्णि आदि ग्रन्थों में भी भगवान महावीर की कठिन तपस्या का रोमांचकारी वर्णन प्राप्त होता है। आचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौवें अध्ययन का पठन तो हृदय को द्रवित कर देता है, पाठक घोर आश्चर्य में डूब जाता है। आचार्य भद्रबाहु ने यहाँ तक लिखा है कि अन्य तीर्थङ्करों की अपेक्षा भगवान महावीर का तप कर्म अत्यन्त उग्र था | 30 बोलचाल की भाषा में कहा जा सकता है कि तेईस तीर्थङ्करों की तपस्या एक तरफ और भगवान महावीर की तपस्या एक तरफ यानी तेईस तीर्थङ्करों की तुलना में भगवान महावीर की तपो साधना कई गुणा अधिक थी। सामान्य तौर पर कहें तो उन्होंने बारह वर्ष और तेरह पक्ष की दीर्घ अवधि में मात्र 349 दिन आहार ग्रहण किया था, शेष दिन वे निर्जल और निराहार ही रहे। 31 प्रभु के तप साधना की तालिका इस प्रकार है 32 - एक - छ: मासी तप, एक-पाँच दिन न्यून छः मासी तप, नौ– चातुर्मासिक तप, दो - त्रिमासिक तप, दो - सार्ध द्विमासिक तप, छह- द्विमासिक तप, दो-सार्ध मासिक तप, बारह- मासिक तप, बहत्तर - पाक्षिक तप, एक-भद्र प्रतिमा (दो दिन), एक - महाभद्र प्रतिमा (चार दिन), एक - सर्वतोभद्र प्रतिमा (दस दिन), दो सौ उनतीस - छट्ठ भक्त, बारह - अष्टम भक्त। इसके अतिरिक्त संगमदेवकृत उपसर्ग, शूलपाणियक्ष कृत उपसर्ग, चण्डकौशिक सर्प द्वारा दिया गया उपसर्ग, कटपूतना नामक व्यन्तरी देवी द्वारा किया गया उपसर्ग, लम्बी अवधि तक नासाग्र दृष्टि ध्यान, खड़े-खड़े कायोत्सर्ग ध्यान, कीट-जन्तुओं द्वारा किये गये उपद्रव, अभिग्रह, रूक्ष तुच्छ आहार का सेवन आदि द्वादश प्रकार सम्बन्धी तपो योग की संख्या तो अनगिनत है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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