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तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...115 उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकार शान्त्याचार्य ने तप योग के निम्न परिणाम कहे हैं। तदनुसार निःसंगता, शरीर लाघव, इन्द्रिय विजय, संयम रक्षा, शुभ ध्यान और कर्म निर्जरा- ये तप के मुख्य परिणाम हैं।13।
___ इसी तरह छेद ग्रन्थों में प्रमुख दशाश्रुतस्कन्ध में आचार्य भद्रबाहु ने तप के परिणाम बताते हुए कहा है कि "तवसा अवहट्ट लेसस्स दंसणं परिसुज्झइ" तपस्या से लेश्याओं को संवृत करने वाले साधक का दर्शन अर्थात सम्यक्त्व परिशुद्ध होता है, निर्मल होता है।14।
इसी प्रकार के महान् फल की प्राप्ति वैदिक ग्रन्थों में भी मानी गयी है। मैत्रायणी आरण्यक में कहा गया है कि15
तपसा प्राप्यते सत्वं, सत्वात् संप्राप्यते मनः ।
मनसा प्राप्यते त्वात्मा, ह्यात्मापत्त्या निवर्तते ।। तप के द्वारा सत्त्व (मनोविजय की ज्ञान शक्ति) प्राप्त होता है, सत्त्व से मन वश में होता है, मन वश में होने से दुर्लभ आत्मत्त्व की प्राप्ति होती है और आत्मा की प्राप्ति हो जाने पर संसार से छुटकारा मिल जाता है तथा आत्मा कर्म बन्धनों से सर्वथा मुक्त हो जाती है। ___ इस प्रकार जैनेतर दर्शनों ने भी तप का अन्तिम लाभ मोक्ष माना है। महर्षि वशिष्ठ से पूछा गया कि संसार में सबसे दुर्लभ अथवा दुष्प्राप्य क्या है? उन्होंने कहा - मोक्ष! फिर पूछा गया - वह दुष्प्राप्य मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है? तो उत्तर दिया- “तपसैव महोग्रेण यद् दुरापं तदाप्यते" अर्थात संसार में जो सर्वाधिक दुर्लभ वस्तु है वह तपस्या के द्वारा प्राप्त की जा सकती है।16 ___उक्त विवेचन का सार यही है कि तपस्या के द्वारा इच्छाओं का निरोध होकर आत्मा स्व-स्वरूप को उपलब्ध करती है। इसलिए कहा जा सकता है कि तप का मुख्य लाभ निर्वाण प्राप्ति है। तप और आसन
तप संकल्प शक्ति का एक उत्कृष्ट रूप है तो आसन मन: स्थैर्य का एक श्रेष्ठ अभ्यास है। यदि सूक्ष्म बुद्धि से मनन करें तो यह सहजगम्य हो जाता है कि तप एवं आसन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। तपश्चर्या में आसन योग समाहित है तो आसनयोग में तप भी समाविष्ट है।