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________________ 88...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक अनाहार की अपेक्षा तप प्रभेद (i) ओजाहार त्याग- उत्पत्ति के समय माता-पिता के रज वीर्य का अथवा अन्य जो आहार किया जाता है, उसे ओज आहार कहते हैं। इस आहार का त्याग करना ओजाहार तप है। (ii) रोमाहार त्याग- शीत या उष्णकाल में चन्दन आदि के तेल मर्दन द्वारा अथवा स्नानादि के द्वारा जो रोमाहार होता है। उसका त्याग कर देना रोमाहार तप है। (iii) कवलाहार त्याग- मुख के द्वारा अन्नादि का सेवन करना अथवा रुग्णावस्था में नली के द्वारा दूध आदि का सेवन करना कवलाहार है उसका त्याग करना, कवलाहार तप है। कवलाहार त्याग की अपेक्षा तप प्रभेद (i) अक्षुधा तप- कुछ विशिष्ट देवों को वर्षों तक भूख नहीं लगती तथा कई युगलिक मनुष्यों को लम्बे दिनों तक भूख नहीं सताती, उनका अक्षुधा तप है। (ii) स्वभाव तप- एकेन्द्रिय (वनस्पति-पृथ्वी आदि) जीव स्वभाव से ही कवल आहार नहीं करते है, उनकी यह स्थिति स्वभाव तप कहलाती है। (iii) इहलोक तप- इस भव के उद्देश्य की पूर्ति हेतु तप करना जैसे रोगादि निवारणार्थ तप करना, लोक लज्जा से तप करना, इच्छापूर्ति के लिए सन्तोषी माता आदि का व्रत करना इललौकिक तप कहलाता है। (iv) परलोक तप- परलोक के उद्देश्य से किया जाने वाला तप जैसे आगामी जन्म में राजा, इन्द्र या देव बनूं आदि विचार से तप करना, पारलौकिक तप है। (v) वीतराग तप - आत्मा को कर्म-बन्धनों से मुक्त करने के लिए बिना किसी कामना के विशुद्ध दृष्टि से जो तप किया जाता है, वह वीतराग तप कहलाता है। सातवें से बारहवें गुणस्थानवी जीवों का तप लगभग वीतराग तप की कोटि का होता है। (vi) सराग तप - किसी भौतिक आकांक्षा, प्रतिष्ठा, कीर्ति, प्रशंसा या स्वर्ग आदि की भावना से जो तप किया जाता है, वह सराग तप कहलाता है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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