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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...85 जिज्ञासा हो सकती है कि चार गति रूप संसार का त्याग कैसे किया जाये? स्थानांगसूत्र में संसार चार प्रकार का बताया गया है- "चउव्विहे संसारे पण्णत्ते तं जहा- दव्व संसारे, खेत्त संसारे, काल संसारे, भाव संसारे।"182 ___ 1. द्रव्य संसार – चार गति रूप संसार द्रव्य संसार है 2. क्षेत्र संसार - तीनों लोक रूप संसार क्षेत्र संसार है 3. काल संसार - एक समय से लेकर पुद्गल परावर्त तक का समय काल संसार है 4. भाव संसार – कषाय, प्रमाद आदि भाव संसार है। ____ यहाँ ज्ञातव्य है कि क्षेत्र एवं काल संसार का व्युत्सर्ग नहीं होता है और द्रव्य संसार का निर्माण भाव संसार से होता है। भाव संसार ही वास्तविक संसार है। विषय-कषाय आदि से जुड़े रहना ही संसार है। उस भाव संसार का त्याग करना ही संसार व्युत्सर्ग कहलाता है। (iii) कर्म व्युत्सर्ग - जैन-परम्परा में कर्म आठ माने गये हैं। इन आठ कर्मों के बन्धन के अलग-अलग कारण बताये गये हैं जैसे- ज्ञान की अशातना करना, ज्ञानी की अवहेलना करना आदि। ज्ञान-ज्ञानी का अविनय करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धन होता है। इस भाँति प्रत्येक कर्म बन्धन के जो पृथक्-पृथक् कारण हैं उन्हें भली प्रकार से समझकर उनका परित्याग करना तथा कर्म तोड़ने के जो उपाय बताये गये हैं उनका यथावत आचरण करना कर्म व्युत्सर्ग कहलाता है। दशवैकालिक अगस्त्यसिंहचूर्णि में व्युत्सर्ग के निम्न दो भेद किये हैं1831. बाह्य उपधि का त्याग और 2. आभ्यंतर उपधि का त्याग। स्वरूपत: बाह्य उपधि का त्याग द्रव्य व्युत्सर्ग कहा जाता है तथा आभ्यन्तर उपधि का त्याग भाव व्युत्सर्ग कहा जाता है। चूर्णिकार के अभिमत से बाह्य उपधि में जिनकल्पी के बारह उपकरण, स्थविरकल्पी के चौदह उपकरण तथा गण, आहार, शरीर, वचन और मन की प्रवृत्ति का त्याग होता है तथा आभ्यन्तर उपधि में मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद और कषाय का त्याग किया जाता है। महत्त्व - चरम लक्ष्य की प्राप्ति में व्युत्सर्ग तप का अत्यधिक महत्त्व है। मानवमात्र को शरीर के प्रति सहज अनुराग होता है उससे मोह की परिधि बढ़ती
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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