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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...65 प्रकार के प्रयोजनों की सिद्धि के लिए अनुकूल वर्तन करना यह- लोकोपचार विनय है। विनय के अन्य प्रकार- दशवैकालिकनियुक्ति में विनय के दो प्रकार निर्दिष्ट हैं - (i) ग्रहणविनय-ज्ञानात्मकविनय, (ii) आसेवनाविनय-क्रियात्मकविनय।114 विशेषावश्यकभाष्य में विनय के पाँच प्रकार बताये गये हैं।15 (i) लोकोपचार विनय- माता-पिता, अध्यापक आदि का विनय करना (ii) अर्थ विनय - धन आदि अर्जित करने के लिए सेठ, मैनेजर आदि का विनय करना (iii) काम विनय - कामवासना की पूर्ति हेतु स्त्री आदि की प्रशंसा करना (iv) भय विनय- अपराध होने पर अधिकारी व्यक्ति का विनय करना (v) मोक्ष विनय - आत्मकल्याण हेतु सद्गुरु आदि का विनय करना। उक्त चार प्रकार के विनय में सांसारिक इच्छा पूर्ति की प्रधानता है और अन्तिम मोक्ष विनय में एकान्त निर्जरा का भाव है। महत्त्व - जैन संस्कृति में विनय को धर्म का मूल बताया गया है। इससे प्रमाणित होता है कि विनय हमारे समस्त जीवन व्यवहार एवं धार्मिक आचरणों की मूल पृष्ठभूमि है। व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन विनय के आधार पर ही टिका हआ है। विनय से रहित व्यवहार धर्म का पालन भी नहीं हो सकता। आचार्य हरिभद्र ने विनय महिमा का संगान करते हुए कहा है116- विनय जिनशासन (द्वादशाङ्ग) का मूल है, विनीत ही संयम की आराधना कर सकता हैं जो विनय से शून्य है वह कैसे धर्म की आराधना कर सकता है और कैसे तप की? इसका सारांश यह है कि विनीत ही धर्म, तप व संयम की आराधना कर सकता है। आचार्य शय्यंभवसूरि लिखते हैं कि धर्म का मूल विनय है और उसका परम फल मोक्ष है। विनय के द्वारा साधक कीर्ति, प्रशंसा, श्रुत और समस्त इष्ट तत्त्वों को प्राप्त करता है।117 भगवान महावीर ने कहा है जो विनीत गुणों को प्राप्त करता है उसकी संसार में कीर्ति, यश एवं प्रतिष्ठा बढ़ती है।118 विनयशील को विश्व के समस्त गुण, समस्त विद्याएँ और सभी सम्पत्तियाँ स्वयं आकर प्राप्त करती हैं। विद्या विनयगुण को पाकर स्वयं को वैसे ही अलंकृत समझती है। जैसे सुशील कन्या सत्पुरुष का वरण कर स्वयं को सुशोभित मानती है। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि - "विवत्ती
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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