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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...47 जीवन भर की सतत साधना है। इसकी साधना हर कोई कर सकता है, किन्तु कठिन है, क्योंकि वैराग्य भाव के उद्बुद्ध होने पर ही यह तप सेवित होता है। श्रमण को आहार का ग्रास किस प्रकार लेना चाहिए ? स्वाद विजय के उपाय क्या हैं? आहार लोलुपता बढ़ने के कौन-कौन से कारण हैं? सरस पदार्थों के सेवन से किन आत्माओं का पतन हुआ? इत्यादि विषयों पर शास्त्रों में सम्यक् प्रकाश डाला गया है। 5. कायक्लेश तप कायक्लेश का शाब्दिक अर्थ है- शरीर को कष्ट देना, ताप पहुँचाना। कष्ट दो प्रकार के होते हैं- एक प्राकृतिक रूप में स्वयं आते हैं या देवता, मनुष्य, तिर्यञ्च आदि के उपसर्गों से प्राप्त होते हैं। सर्दी लगना, ग्रीष्म ताप से बेचैनी होना, वर्षा में तूफान आदि से प्रभावित होना, डांस-मच्छर आदि का काटना, अकारण मनुष्य आदि से अपमानित होना इत्यादि प्रकार के कष्ट सहज आते हैं। दूसरे प्रकार के कष्ट उदीरणा करके आमन्त्रित किये जाते हैं जैसे- कठिन आसन आदि करना, ध्यान मुद्रा में बैठे रहना, कायोत्सर्ग मुद्रा में निष्प्रकम्प खड़े रहना, पैदल विहार करना, केशलुंचन करना, आतापना लेना, स्वयं को प्रतिकूल परिस्थितियों में खड़े करना आदि कई प्रकार के कष्ट जान-बूझकर बुलाये जाते हैं। ___ साधक चाहे तो ही उदीरणा प्राप्त कष्ट आते हैं अन्यथा बंधे हुए कर्म अपनी-अपनी स्थिति के पूर्ण होने पर ही उदय में आते हैं और स्वयं की प्रकृति (स्वभाव) के अनुसार आत्मा को सुख-दुःख की अनुभूति कराते हैं। उदीरणा के द्वारा बाद में उदय प्राप्त दुष्कर्मों को पहले ही क्षीण कर दिया जाता है। उदीरणा हर साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता। उसके लिए आत्मबल और संकल्पबल की आवश्यकता होती है। जैसे- अतिथि को निमन्त्रण देकर बुलाया जाता है वैसे ही साधक धैर्यता व सहिष्णुता की कसौटी करने हेतु कष्टों को स्वत: आमन्त्रित करता है इसलिए ये कष्ट आत्म स्वीकृत कहलाते हैं। यहाँ यह ध्यान देना जरूरी है कि "देह दुःखं महाफलं' उक्ति के अनुसार मात्र देह को कष्ट देने से ही महान फल की प्राप्ति नहीं होती है। अज्ञानी व्यक्ति कई प्रकार के कष्ट सहता है, किन्तु उसका देह दुःख महाफल प्रदाता नहीं होता। वीतराग वाणी के आलोक में ज्ञानपूर्वक दिया गया दैहिक कष्ट ही कर्म-निर्जरा
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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