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________________ 46...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक 2. प्रणीत आहार - घृत आदि टपकता हुआ, अति स्निग्ध और बलवीर्य वर्द्धक भोजन का त्याग करना, रस परित्याग तप का दूसरा प्रकार है। 3. आयंबिल - सिर्फ भुना हुआ या उबला हुआ भोजन करना। 4. आयामसिक्थ भोजन - धान्यादि के धोये हुए पानी में शेष बच गये कणों को ग्रहण कर उदरपूर्ति करना। 5. अरसाहार - नमक, मिर्च आदि षड्रसों से रहित भोजन करना जैसेउड़द के बाकुले, भुने हुए चने आदि। 6. विरसाहार – बहुत पुराना अन्न जो स्वभावतः रस या स्वाद रहित हो गया हो उसका बनाया हुआ आहार ग्रहण करना। 7. अन्ताहार - अत्यन्त हल्की जाति के अन्न से बना हुआ आहार ग्रहण करना अथवा सबसे आखिर में बना हुआ आहार लेना। 8. प्रान्ताहार - बहुत हल्की किस्म के अन्न से बना हुआ तथा भोजन कर लेने के पश्चात बचा-खुचा आहार ग्रहण करना प्रान्ताहार कहलाता है। 9. रूक्षाहार - रूखा-सूखा आहार ग्रहण करना। कुछ आचार्यों ने तुच्छाहार (जली हुई रोटी) आदि के कुछ और प्रकारों को मानकर कुल 14 भेद किये हैं। इस तरह भोजन में रस, स्वाद, चिकनाई आदि का त्याग करके रसपरित्याग तप की साधना कई प्रकार से की जा सकती है। लाभ- रस परित्याग तप की आराधना करने से अस्वाद व्रत का पालन होता है, स्वाद विजय की साधना होती है, स्वाद लोलुपता से सम्भावित हानियों से बचाव होता है, विवेक चक्षु उद्घाटित रहता है, यौगिक विकार उत्तेजित नहीं होते हैं, रसना इन्द्रिय की चंचलता समाप्त हो जाती है, ब्रह्मचर्य का पालन होता है और वीर्यशक्ति में अभिवृद्धि होती है। वैराग्य भाव पृष्ट होता है। स्वाद न लेने से श्रमण आहार ग्रहण करता हुआ भी तप करता है। अस्वादवृत्ति के कारण वह सात-आठ कर्मों के बन्धनों को शिथिल कर देता है। यहाँ तक कि अस्वाद वृत्ति से आहार ग्रहण करता हुआ श्रमण भी केवलज्ञान को प्राप्त कर लेता है। यह तप मुनि एवं गृहस्थ दोनों के लिए समान है। यद्यपि मुनि जीवन में स्वाध्याय- ध्यान आदि प्रवृत्तियों की सफलता हेतु रस वर्जन का अधिक महत्त्व है, एतदर्थ इस विषय में विस्तृत चर्चा की गयी है। साथ ही उल्लेख्य है कि उपवास आदि तप की पृथक्-पृथक् काल मर्यादा है, किन्तु रस परित्याग तप तो
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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