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40...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक फैलाया गया हो, फिर समेट कर पात्र आदि में डाला जा रहा हो, ऐसे (भोजन) में से आहार लेने की प्रतिज्ञा करना।
7. उपनीत चर्या - किसी के द्वारा किसी के लिए उपहार रूप में भेजी गयी भोजन सामग्री में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेना।
8. अपनीत चर्या - किसी को दी जाने वाली भोजन सामग्री में से निकालकर अन्यत्र रखी हुई भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना।
9. उपनीतापनीत चर्या - स्थानान्तरित की हुई भोजनोपहार सामग्री में से आहार लेने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना अथवा दाता द्वारा पहले किसी अपेक्षा से गुण तथा बाद में किसी अपेक्षा से अवगुण-कथन के साथ दी जाने वाली भिक्षा स्वीकार करने की प्रतिज्ञा लेना।
10. अपनीतोपनीत चर्या - किसी के लिए उपहार रूप में भेजने हेतु पृथक् रखी हुई भोजन-सामग्री में से भिक्षा लेने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना अथवा दाता द्वारा पहले किसी अपेक्षा से अवगुण तथा बाद में किसी अपेक्षा से गुण कथन के साथ दी जाने वाली भिक्षा स्वीकार करने की प्रतिज्ञा लेना।
11. संसृष्ट चर्या - लिप्त हाथ आदि से दी जाने वाली भिक्षा लेने की प्रतिज्ञा रखना।
12. असंसृष्ट चर्या - अलिप्त या स्वच्छ हाथ आदि से दी जाने वाली भिक्षा लेने की प्रतिज्ञा करना।
13. तज्जातसंसृष्ट चर्या – दिये जाने वाले पदार्थ से लिप्त हाथ आदि द्वारा दिया जाता आहार स्वीकार करने की प्रतिज्ञा करना।
14. अज्ञात चर्या - स्वयं को अज्ञात-अपरिचित रखकर निरवद्य भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना।
15. मौन चर्या - स्वयं मौन व्रत में रहते हुए भिक्षा लेने की प्रतिज्ञा करना।
16. दृष्ट लाभ - दिखाई देता या देखा हुआ आहार लेने की प्रतिज्ञा करना अथवा पूर्व काल में देखे हुए दाता के हाथ से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना।
17. अदृष्ट लाभ - पहले नहीं देखा हुआ आहार अथवा पूर्वकाल में नहीं देखे हुए दाता द्वारा दिया जाता आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेना।