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2... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
अर्थ-संवेदन (अर्थ-ज्ञान) आगम कहलाता है। उपचारत: आप्त वचन भी आगम कहे जाते हैं।
• आगम शब्द में प्रयुक्त 'आ' 'ग' 'म' इन अक्षरों के निम्न अर्थ भी किए हैं- 'आ' अर्थात जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ 'म' अर्थात मर्यादा वाला 'ग' अर्थात ज्ञान प्राप्त हो वह आगम है।' आगम की विभिन्न परिभाषाएँ ___आवश्यकचूर्णि में आप्तवचन को आगम कहा गया है। यह व्याख्या अन्य ग्रन्थों में भी प्राप्त होती है।
आवश्यक टीका में कहा गया है कि अनन्त ज्ञानी केवली भगवान भव्य आत्माओं के प्रतिबोध के लिए तप-नियम-ज्ञान रूप वृक्ष के ऊपर आरूढ़ होकर ज्ञान पुष्पों की वृष्टि करते हैं, गणधर अपने बुद्धि पटल पर उन सकल कुसुमों को ग्रहण कर प्रवचन माला गूंथते हैं, वही आगम है।
आवश्यक नियुक्ति एवं धवलाटीका के अनुसार तीर्थंकर केवल अर्थ का उपदेश देते है और गणधर उसे सूत्रबद्ध करते हैं उसके बाद वह सूत्र (आगम) शासन हित के लिए प्रवृत्त होता है।10
नन्दीटीका के मतानुसार जो समस्त श्रुतगत विषयों से व्याप्त है, मर्यादा से सम्पन्न है, यथार्थ प्ररूपणा के कारण जिससे अर्थ जाने जाते हैं तथा अर्थों को अलग-अलग कर जिससे स्पष्टता की जाती है वह आगम है।11
आचार्य सिद्धसेन के अनुसार आचार्यों की परम्परा से वासित होकर जो (जिनवचन) प्राप्त होते हैं वे आगम हैं।12 इस व्याख्या में ‘वासित' शब्द, जीत क्रम से जो-जो आगम अविरुद्ध, असावध, संविग्न गीतार्थों द्वारा आचरित आचरणाएँ हैं उनसे सम्बन्ध रखता है।
विशेषावश्यकभाष्य में आगम अर्थ को परिभाषित करते हए कहा गया है कि जिससे अनुशासन प्राप्त होता है वह शास्त्र है, अथवा जो विशिष्ट ज्ञान रूप है वह शास्त्र है और आगम ही (ऐसा) शास्त्र है। परमार्थतः आगम शास्त्र ही श्रुतज्ञान है।13
परीक्षामुख के अनुसार आप्त के वचनों से होने वाले पदार्थों का ज्ञान आगम है।14 तथा जो वाणी पूर्वापर दोष रहित और शुद्ध है वह आगम है।15
रत्नकरण्डक श्रावकाचार के मतानुसार जो आप्त कथित हो, वादी