SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण .xlvii यह शोध कृति मूलतः आगम शास्त्रों के अध्ययन सम्बन्धी विधि-विधानों से संपृक्त है। फिर भी इसमें तत्सम्बन्धी समग्र विषय का समीक्षात्मक एवं तुलनात्मक दृष्टि से प्रतिपादन किया गया है जो निम्नलिखित सात अध्यायों में इस प्रकार है प्रथम अध्याय जैन आगमों से सम्बन्धित अनेक पक्षों का सम्यक परिचय करवाता है। वस्तुतः इसमें आगम शब्द का अर्थबोध करवाते हुए आगम के प्रकार, आगमों के रचयिता, आगम वाचनाएँ कब और कहाँ ? आगमों का विच्छेद काल, आगमों की मौखिक परम्परा का इतिहास आदि आवश्यक बिन्दुओं को स्पष्ट किया गया है। द्वितीय अध्याय में अनध्याय विधि का दिग्दर्शन करवाया गया है। आगम ग्रन्थों को अनध्याय काल में नहीं पढ़ना चाहिए, इसलिए द्वितीय क्रम पर इस विधि को स्थान दिया गया है। सामान्यतया प्रस्तुत अध्याय में अनध्याय के प्रकार, अनध्याय किन-किन स्थितियों में? अनध्यायकाल में स्वाध्याय करने से लगने वाले दोष आदि का वर्णन किया गया है। आगमों का अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है इसलिए तृतीय अध्याय में स्वाध्याय विधि का अनेक दृष्टियों से विचार किया गया है। मुख्यतः स्वाध्याय के प्रकार, स्वाध्याय का फल, स्वाध्याय आवश्यक क्यों ? स्वाध्याय न करने के दोष, स्वाध्याय काल सम्बन्धी कुछ अपवाद ऐसे विशिष्ट तथ्यों को उजागर करते हुए स्वाध्याय को भाव रोगों का चिकित्सक सिद्ध किया है। चतुर्थ अध्याय योगोद्वहन के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालता है। पंचम अध्याय में योगोवहन काल में उपयोगी विधियों का प्राचीन एवं अद्य प्रचलित स्वरूप बताया गया है। षष्ठम अध्याय आगम अध्ययन की मौलिक विधि से सम्बन्धित है। इसमें सामान्य रूप से आचारांग आदि ग्यारह अंग सूत्र, बारह उपांग सूत्र, छह छेद सूत्र, चार मूल सूत्र, प्रकीर्णक सूत्र ऐसे लगभग पैंतालीस आगमों के अध्ययन की तप विधि बतलाई गई है। इसी के साथ योगवाहियों की सुगमता के लिए तप यन्त्र भी दिया गया है। अर्जित आगम पाठों की यथार्थ फलश्रुति पाने के लिए वसति एवं शरीर की शुद्धि होना आवश्यक है। सप्तम अध्याय में कल्पत्रेप विधि इसी से
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy