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________________ आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ...xlv 1. अध्यात्म योग 2. भावना योग 3. ध्यान योग 4. समता योग और 5. वृत्तिसंक्षेप योग। योगोद्वहन में इन पाँचों योगों का स्पष्टत:समावेश होता है। व्यवहार से यह शब्द आगम शास्त्रों का विधिपूर्वक अध्ययन करने में रूढ़ है किन्तु परमार्थतः अध्यात्म विद्या को उपलब्ध करना ही इसका प्रमुख ध्येय है। __योगोद्वहन काल में विशिष्ट नियमों के पालन द्वारा अध्यात्मयोग, शुभ अध्यवसायों के द्वारा भावना योग, कायोत्सर्ग आदि द्वारा ध्यान योग, अनुकूलप्रतिकूल स्थितियों में विचलित न होते हुए आत्म स्वरूप का चिन्तन करने से समता योग और आयंबिल आदि तप कर्म द्वारा वृत्तिसंक्षेप योग- इस प्रकार पाँचों योगों का सम्यक प्रयोग किया जाता है। प्रश्न हो सकता है कि साधु-साध्वी तो निरन्तर तप-जप स्वाध्याय आदि में संलग्न रहते हैं तो फिर उनके लिए इस क्रिया का विधान क्यों? योगोद्वहन के द्वारा मुनि अपने आपको आगम सूत्रों के पारायण हेतु योग्य बनाता है। किसी भी वस्तु को ग्रहण करने से पूर्व उसके योग्य पात्र होना अत्यावश्यक है जैसे- सिंह के दूध को ग्रहण करने के लिए स्वर्णपात्र की आवश्यकता होती है वैसे सर्वज्ञ परमात्मा की आप्तवाणी को जीवन में हृदयंगम करने हेतु त्याग, समर्पण,लघुता, विनय, पूज्यभाव आदि गुण होना नितांत आवश्यक है। यद्यपि योगोद्वहन का मुख्य हेतु श्रुताभ्यास है परन्तु इसके साथ तपाराधना, गुरुनिश्रा, सेवा, स्वाध्याय आदि अनेक लाभों की Bonus रूप में प्राप्ति हो जाती है। आगम सूत्रों के प्रति बहुमान बढ़ता है जिससे ज्ञानावरणीय कर्म की निर्जरा होती है। तप साधना करने से काया का निरोध होता है। काया का निरोध वचन निरोध में सहायक बनता है एवं वचन निरोध मन के निरोध में हेतुभूत है। इन तीनों के निरोध से व्यक्ति एकाग्र एवं स्थिर बनता है। एकाग्रता सफलता का मूल मंत्र है। चित्त की एकाग्रता होने पर कम समय में अधिक ज्ञानार्जन किया जा सकता है तथा वही ज्ञान स्थिर एवं स्व-पर कल्याण के लिए भी उपयोगी बनता है। ___ज्ञानार्जन के समय में तो अधिक पौष्टिक आहार लेना चाहिए, यह लोक मान्यता है परन्तु इसके विपरीत योगोद्वहन काल में तप साधना क्यों? अनुभूति के स्तर पर इसके जवाब में यही कह सकते हैं कि गरिष्ठ आहार का त्याग होने से निद्रा-प्रमाद आदि में मन्दता आती है, सजगता एवं जागृति बढ़ती है, अनावश्यक कार्यों में कायिक, मानसिक एवं वैचारिक अनुगमन भी कम होता
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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