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396... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
गणिपिटक - गणि- गणधर या आचार्य, पिटक - खजाना अर्थात तीर्थंकरों के उपदेश रूप पिटारे को गणधरों द्वारा जिसे सूत्र रूप में संकलित किया गया है, वे आगम गणिपिटक कहलाते हैं। ग्यारह अंग सूत्रों को गणिपिटक कहा जाता है।
काल प्रतिलेखना- श्रमण के लिए काल का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। सूत्रकृतांगसूत्र में कहा गया है कि अशन, पान, वस्त्र, शयन आदि क्रियाएँ नियुक्त काल में करनी चाहिए | " आचारांग सूत्र में मुनि को 'कालज्ञ' होना अनिवार्य बताया गया है। 7 यहाँ काल प्रतिलेखना का तात्पर्य स्वाध्याय सम्बन्धी प्रादोषिक, प्राभातिक आदि शुद्ध काल को प्राप्त करना है। कालज्ञ संज्ञा जो आचारांग आदि में बतायी गई है, उससे योगविधि के कालग्राही का कोई सम्बन्ध नहीं है। आगम सूत्रों में द्रव्यज्ञ, क्षेत्रज्ञ, कालज्ञ, भावज्ञ का उल्लेख सर्व साधारण तौर पर है जबकि योग विधि में अलग संदर्भ है।
उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार काल की प्रतिलेखना से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है।
कालग्रहण- कुछ विशिष्ट आगम सूत्रों को पढ़ने के लिए कालग्रहण लिए जाते हैं। कालिक सूत्रों को शुद्ध काल में ही पढ़ने-पढ़ाने का विधान है। अशुद्ध काल में स्वाध्याय करने पर आत्मघात, उपद्रव, स्मृति भ्रंश, मिथ्यात्वी देवों द्वारा त्रास आदि दोष उत्पन्न हो सकते हैं। अतः 'काल शुद्ध है या नहीं ' इसका परीक्षण करने के लिए कालग्रहण लिया जाता है। पूर्व काल में कालग्राही मुनि तारा आदि आकाशीय ग्रह एवं दिशाएँ आदि देखकर, शुद्धाशुद्ध काल का निर्णय करते थे। आजकल विधि शुद्धता से यह निर्णय किया जाता है। ओघनिर्युक्ति में कहा गया है कि अशुद्ध काल हो तो देवता कालग्रहण आने नहीं देते हैं अतः इसमें देवों की भी बृहद भूमिका होती है। आचार्य भगवन्त श्री कीर्तियशसूरीश्वरजी म.सा. का मानना है कि योग के अधिष्ठायक देव अति जागृत हैं। जरा सी भी चूक होने पर तुरन्त अहसास करा देते हैं।
कालग्रहण के समय सभी योगवाहियों को वहाँ उपस्थित रहना अनिवार्य है। सामाचारी के अनुसार जो योगवाही उपस्थित रहते हैं वे ही काल सम्बन्धी क्रिया कर सकते हैं। शास्त्रीय रीति से एक दिन में एक कालग्रहण लेना चाहिए क्योंकि एक कालग्रहण लेने पर 100 खमासमण विधि पूर्वक दिए जा सकते हैं।