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394... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
में गुरु के समक्ष निवेदन करना 'पवेयणा' कहलाता है। पवेयणा-प्राकृत रूप है, इसका हिन्दी रूप प्रवेदना अर्थात निवेदन है।
हेतु
इस प्रकार योगोद्वहन सम्बन्धी आवश्यक क्रियाओं की अनुमति प्राप्त करने गुरु के समक्ष उसका निवेदन करना 'पवेयणा पवेइए' कहलाता है। आक संधि- आक का अर्थ है दिन और संधि का अर्थ है जोड़ना । सूत्र पूर्णाहूति के अन्तिम दो या तीन दिन, जिनमें समान रूप से आयंबिल तप ही किया जाता है। तप आदि की दृष्टि से जुड़े हुए होने के कारण इन दिनों को आक संधि कहते हैं। आगमविद पूज्य रत्नयशविजयजी म.सा. के अनुसार आक संधि, अक्ष संधि का प्राकृत या अपभ्रंश रूप होना चाहिए। स्वरूपतः आगम सूत्र या श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा के दिनों को आक संधि कहते हैं।
स्पष्टतया जब किसी आगम सूत्र या श्रुतस्कन्ध का समुद्देश एवं अनुज्ञा जैसी दोनों विशिष्ट क्रियाएँ एक साथ या निरन्तर क्रम में आती हैं, उन दिनों को आक संधि कहा जाता है अथवा एक ही सूत्र या श्रुतस्कन्ध के समुद्देश- अनुज्ञा के दो या तीन दिनों के संपुट को आक संधि कहते हैं। जब-जब समुद्देश अनुज्ञा साथ आते हैं तब-तब आक संधि आती है । उसी तरह श्रुतस्कन्ध का समुद्देश + अध्ययन का समुद्देश आता है तब भी आक संधि आती है।
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इन दिनों में विशेष उपयोग रखना चाहिए। यदि दिन गिर जाये तो वह आकसंधि (आयंबिल तप) द्वारा ही पूर्ण करना होता है। जैसे वाहन चालक को मोड़ पर अधिक सावधानी की जरूरत होती है, देहधारी प्राणी के हाथ, पाँव आदि में सांधा (Joints) महत्त्वपूर्ण होते हैं, वैसे ही ये दिन मोड़ (curve ) के स्थान गिने जाते हैं। अतः इन दिनों में सचेत - उपयोगवन्त रहना जरूरी है।
कृतयोगी - कृतयोगी का शाब्दिक अर्थ है योगोद्वहन किया हुआ मुनि | भिक्षु आगम विषय कोश में अध्ययन, तप, वैयावृत्य आदि में अभ्यस्त मुनि को कृतयोगी कहा गया है।
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व्यवहारभाष्य की टीका में कृतयोगी की निम्न परिभाषाएँ बताई गयी हैंछेद ग्रंथों के सूत्र और अर्थ को धारण करने वाला स्थविर मुनि कृतयोगी है। • जो सूत्र और अर्थ दोनों को धारण करता है वह कृतयोगी है। • जिसने योगवहन का अभ्यास किया है, अनेक बार कठोर तपोयोग से अपने आपको भावित किया है वह कृतयोगी है। • जो दीर्घकालिक तप अनुष्ठान से भी क्लांत नहीं होता वह कृतयोगी है। 3