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________________ योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...373 तुलनात्मक विवेचन जैन मत में आगम सूत्रों का सर्वोच्च स्थान है। इन सूत्रों के अध्ययनअध्यापन की योग्यता प्राप्त करने हेतु एक सुनिश्चित विधि सम्पन्न की जाती है जिसमें गुरुमुख से पाठ ग्रहण, गुरु को द्वादशावर्त वन्दन, कायोत्सर्ग, तप आदि अनुष्ठान किए जाते हैं। वर्तमान परम्परा में ग्यारह अंग सूत्र, बारह उपांग सूत्र, छ: छेद सूत्र, दस प्रकीर्णक सूत्र, चार मूल सूत्र ऐसे लगभग पैंतालीस सूत्रों के योगोद्वहन करनेकरवाने की परिपाटी प्रचलित है। ये आगम सूत्र किस विधि पूर्वक अधिगत किए जाते हैं तथा किस दिन कौनसा श्रुतस्कन्ध, अध्ययन या उद्देशक (पाठ) पढ़ा जाता है या पढ़वाया जाता है, इस सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन किया जा चुका है। यदि आगम अध्ययन (योग तप) विधि की पूर्व-परवर्ती ग्रन्थों से तुलना की जाए तो कुछ नये तथ्य इस प्रकार उजागर होते हैं___ . आगम संख्या की दृष्टि से- सामाचारी संग्रह,18 प्राचीन सामाचारी,19 विधिमार्गप्रपा,20 सुबोधासामाचारी21 एवं आचारदिनकर22 आदि ग्रन्थों में ग्यारह अंग, बारह उपांग आदि सभी सूत्रों के योग करने का उल्लेख है किन्तु तिलकाचार्य सामाचारी23 में प्रकीर्णक सूत्रों के योगोद्वहन का सूचन नहीं है। ___ उद्देशक आदि क्रम की दृष्टि से- यद्यपि समाचारी ग्रन्थों एवं विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में योग तप विधि का सम्यक वर्णन किया गया है किन्तु विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर में यह विधि अपेक्षाकृत विस्तार के साथ कही गई है। इन दोनों ग्रन्थों में आगम सूत्रों के उद्देशादि की वाचना क्रम को लेकर भेद हैं। विधिमार्गप्रपा में अंग सूत्र, श्रुतस्कन्ध, अध्ययन एवं उद्देशक की उद्देश- समुद्देश-अनुज्ञा रूप वाचना ग्रहण करने का क्रम इस प्रकार बतलाया है- सर्वप्रथम अंग सूत्र का उद्देश करें, फिर श्रुतस्कन्ध का उद्देश करें, फिर प्रथम अध्ययन का उद्देश करें, फिर प्रथम अध्ययन के पहले-दूसरे उद्देशक के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। शेष उद्देशकों को दो-दो के क्रम से पूर्ण करें। यहाँ तक दोनों ग्रन्थों में साम्य है परन्तु विधिमार्गप्रपा के मतानुसार जिस दिन अध्ययन पूर्ण होता हो, उस दिन क्रमशः शेष उद्देशकों के उद्देशसमुद्देश की क्रिया करें, फिर अध्ययन का समुद्देश करें, फिर शेष उद्देशकों की अनुज्ञा करें और फिर अध्ययन की अनुज्ञा करें।24 यह क्रम औचित्यपूर्ण मालूम
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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