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________________ 372... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण योगोद्वहन के दिनों की संख्या पूर्व निर्दिष्ट विवरण के अनुसार आवश्यकसूत्र के योग में आठ दिन, दशवैकालिकसूत्र के योग में पन्द्रह दिन, मण्डली प्रवेश के योग में सात दिन, उत्तराध्ययनसूत्र के योग में अट्ठाईस दिन, आचारांगसूत्र के योग में पचास दिन, स्थानांगसूत्र के योग में अठारह दिन, समवायांगसूत्र के योग में तीन दिन, निशीथसूत्र के योग में दस दिन, कल्प-व्यवहार एवं दशाश्रुतस्कन्ध के योग में बीस दिन, सूत्रकृतांगसूत्र के योग में तीस दिन, भगवती अंग के योग में एक सौ छियासी दिन, ज्ञाताधर्मकथासूत्र के योग में तैंतीस दिन, उपासकदशांग के योग में बीस दिन, निरयावलिका दशा सूत्र के योग में सात दिन, अन्तकृतदशांग के योग में बारह दिन, अनुत्तरोपपातिकदशा सूत्र के योग में सात दिन, औपपातिकसूत्र के योग में तीन दिन, राजप्रश्नीयसूत्र के योग में तीन दिन, जीवाजीवाभिगमसूत्र के योग में तीन दिन, प्रज्ञापनासूत्र के योग में तीन दिन, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति एवं चन्द्रप्रज्ञप्ति के योग में भी तीन-तीन दिन, प्रश्नव्याकरणसूत्र के योग में चौदह दिन, विपाकश्रुत के योग में चौबीस दिन, महानिशीथ सूत्र के योग में पैंतालीस दिन, जीतकल्प के योग में एक दिन, पंचकल्प के योग में एक दिन- इस प्रकार कुल पाँच सौ इकसठ दिन होते हैं। इनकी मास गणना करने पर अठारह महीना और इक्कीस दिन होते हैं। __योगोद्वहन की इन संख्याओं में प्रकीर्णक सूत्रों के योग दिन की संख्या सम्मिलित नहीं की गई है, क्योंकि प्रकीर्णक सूत्रों की संख्या एवं उनकी योगोद्वहन विधि को लेकर काफी मत-मतान्तर हैं। जैसे कि कुछ ग्रन्थों में दस, तो कुछ में चौदह और कुछ में बीस प्रकीर्णक सूत्रों के योग करने का उल्लेख है तथा किन्हीं में प्रकीर्णक सूत्रों को एक ही दिन में वहन करने का सूचन है तो कुछ आचार्यों के मत में एक-एक प्रकीर्णक को एक-एक दिन में वहन करने का निर्देश है। अतएव अपनी सामाचारी एवं परम्परा के अनुसार प्रकीर्णक सूत्रों के योग करने चाहिए और तदनुसार ही उनके दिन की गणना करनी चाहिए। प्राचीन सामाचारी में नंदीसूत्र के तीन दिन, अनुयोगद्वार सूत्र के तीन दिन, देवेन्द्रस्तव आदि प्रकीर्णकों के एक-एक दिन मिलाकर कुल 19 मास और छह दिन बतलाए गए हैं।17
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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