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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि... 369
समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया की जाती है। इसकी क्रिया विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करनी चाहिए।
आचारदिनकर के अनुसार प्रकीर्णक सूत्रों के नाम ये हैं- 1. नंदी 2. अनुयोगद्वार 3. देवेन्द्रस्तव 4. तण्डुलवैतालिक 5. चंद्रवेध्यक 6. आतुरप्रत्याख्यान 7. गणिविद्या 8. कल्पाकल्प 9 क्षुल्लकल्पश्रुत 10. राजकल्पसूत्र 11. प्रमादाप्रमाद 12. पौरुषी - मंडल 13. विद्याचार व्यवच्छेद 14. आत्मविशुद्धि 15. मरण विशुद्धि 16. ध्यानविभक्ति 17. मरणविभक्ति 18. संलेखना श्रुत 19. वीतरागश्रुत 20. महाप्रत्याख्यान । प्राचीन सामाचारी में 21 प्रकीर्णक सूत्रों के योग करने का उल्लेख है । तपागच्छ की अर्वाचीन प्रतियों में 19 प्रकीर्णकों के योगोद्वहन करने का निर्देश है।
• विधिमार्गप्रपा में ऋषिभाषित सूत्र को भी प्रकीर्णक सूत्रों में गिना गया है तथा इस सूत्र की योगोद्वहन विधि बतलाते हुए कहा गया है कि ऋषिभाषित में कालिक आदि पैंतालीस अध्ययन हैं। एक अध्ययन एक दिन में पूर्ण होता है - इस प्रकार इस सूत्र के योग में 45 दिन लगते हैं। इस सूत्र के योगकाल में 45 दिन नीवि तप ही करते हैं। यह अनागाढ़ योग है । किन्हीं के मतानुसार ऋषिभाषित के अध्ययनों का उत्तराध्ययनसूत्र में अन्तर्भाव हो जाता है।
गीतार्थ मुनियों के अनुसार ऋषिभाषित के योग (उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा) तीन कालग्रहण और तीन आयंबिल पूर्वक किए जाते हैं।
प्राचीन सामाचारी, सुबोधासामाचारी एवं विधिमार्गप्रपा के मतानुसार प्रकीर्णक सूत्रों की योगविधि का यन्त्र न्यास इस प्रकार है
प्रकीर्णक नाम
दिन कायोत्सर्ग
1
1
1
1
1
1
1
1
1
1
1
1.
2.
3. देवेन्द्रस्तव
4.
5.
6.
7. आराधना पताका
8. गणिविद्या
आतुरप्रत्याख्यान महाप्रत्याख्यान
तंदुल वैतालिक
संस्तारक प्रकीर्णक
भक्त परिज्ञा
1
1
1
民术术术术术术术术
तप
नी.
नी.
नी.
नी.
नी.
नी.
नी.
नी.