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366... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
बत्तीसवें दिन योगवाही तीसरे-चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें तथा कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष सभी क्रियाएँ छह-छह बार करें।
तैंतीसवें दिन योगवाही पाँचवें-छठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश की क्रिया करें, फिर सप्तम अध्ययन का समुद्देश करें। उसके बाद पाँचवें-छठवें उद्देशक एवं सप्तम अध्ययन की अनुज्ञा करें तथा एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ आठ-आठ बार करें। . चौंतीसवें दिन योगवाही अष्टम अध्ययन का उद्देश करें, फिर इसके पहलेदूसरे उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें तथा कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ सात-सात बार करें। ____ पैंतीसवें दिन योगवाही अष्टम अध्ययन के तीसरे-चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें तथा कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ छह-छह बार करें।
छत्तीसवें दिन से लेकर बयालीसवें दिन तक अष्टम अध्ययन के पाँचवें उद्देशक से लेकर अठारहवें उद्देशक तक उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। प्रतिदिन क्रमश: दो-दो उद्देशकों के उद्देश आदि करें। प्रत्येक दिन एक 'कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष सभी क्रियाएँ छह-छह बार करें।
तैंतालीसवें दिन योगवाही उन्नीसवें-बीसवें उद्देशक के उद्देश-समुद्देश की क्रिया करें। फिर अष्टम अध्ययन का समद्देश करें। उसके बाद उन्नीसवें-बीसवें उद्देशक एवं अष्टम अध्ययन की अनुज्ञा करें। एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करें।
चौवालीसवें दिन योगवाही महानिशीथ श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ पूर्ववत एकएक बार करें।
पैंतालीसवें दिन योगवाही महानिशीथ श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा विधि करें। नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ पूर्ववत एक-एक बार करें।
इस प्रकार महानिशीथ श्रुतस्कन्ध के योग में कुल पैंतालीस दिन लगते हैं एवं इसमें एक नंदी होती है। आचारदिनकर के अनुसार पैंतालीस आयंबिल आयुक्त पानक के द्वारा करते हैं।