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338... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
सौ पन्द्रह ऐसे दो सौ इकतीस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया नौवें शतक के समान पूर्ण करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें।
पचहत्तरवें दिन योगवाही इकतालीसवें राशियुग्म शतक का एवं उसके आदि के अट्ठावनवें एवं अन्त के अट्ठावनवें- ऐसे एक सौ छियानवे उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया नौवें शतक के समान पूर्ण करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें।
छिहत्तरवें दिन योगवाही भगवती सूत्र के समुद्देश की क्रिया करें। इसके निमित्त एक कालग्रहण लें और आयंबलि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
सतहत्तरवें दिन योगवाही भगवतीसूत्र के अनुज्ञा की क्रिया करें। इस अनुज्ञा निमित्त एक कालग्रहण लें, नन्दी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
श्री भगवतीसूत्र - आगाढयोग, दिन- 183, काल - 77, नंदी - 2, शतक - 41
6
7
दिन
शतक
1
अं.उ., नंदी
श.उ.1
उद्देशक 1/2 3/4 5/6 7/8 9/10
कायोत्सर्ग
तप
दिन
शतक
8
आ.
कायोत्सर्ग तप
∞ 2
8
उद्देशक 2/3
6 F
नी.
2
1
6 F
नी.
9
2
4/5
3
1
6 F
10
2
4
1
नी. नी.
6
6 F
11
2
6
5
6
नी. नी. नी.
1
∞ F
6/7 8/9 10
नी. आ.
22
12
2. शत. उ.
1. खंधक उ. खंध. अनु.
समु.
3
5
नी.
13
3
1
4
F
2
नी.
1
आ.
14
3
2 चमर
उद्दे.,समु.
2
आ.