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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...157 वसति शुद्ध होनी चाहिए, यदि अशुद्ध वसति में संघट्टा लेकर आहार आदि करें तो दिन गिरता है। 140. योगानुष्ठान करते समय नन्दि रचना की गई हो तो द्वादशावर्त्तवन्दन करते वक्त जिनप्रतिमा पर परदा करवाएं। 141. रात्रि सम्बन्धी कालग्रहण क्रिया पृथक्-पृथक् करें तो छह स्वाध्याय प्रस्थापना और छह पाटली स्थापन की क्रिया होती है, परन्तु एक साथ की जाये तो कुल पाँच ही क्रिया करने की प्रवृत्ति है। स्पष्ट है कि रात्रि के काल ग्रहण जब लिए जाते हैं तब उनकी सज्झाय-पाटली की प्रत्येक क्रिया उसी समय कर ली जाती है। रात्रि के दो काल ग्रहण की क्रिया एक साथ नहीं होती, किन्तु प्रभात समय के दो कालग्रहण की क्रिया (सज्झाय-पाटली) एक साथ कर सकते हैं। 142. सभी सूत्रों के मूल दिन पूर्ण होने के बाद वृद्धि और गिरे हुए जितने दिन हों, उतने दिन का प्रवेदन करना चाहिए। 143. चातुर्मास के अतिरिक्त काल में मेघ आदि के कारण आकाश आच्छादित हो तो व्याघातिक, अर्द्धरात्रिक, वैरात्रिक- ये तीनों काल जघन्य से तीन तारे दिखाई देने पर ही लिये जा सकते हैं, किन्तु प्राभातिक काल में एक भी तारा दिखाई न दें तब भी लिया जा सकता है। वर्षाकाल में चारों कालग्रहण ताराओं के न दिखने पर भी लिये जा सकते हैं। 144. आक संधि का शब्दश: अर्थ तो स्पष्ट नहीं है किन्तु आगम विशारद पूज्य रत्नयशविजयजी महाराज साहब के अनुसार समुद्देश + अनुज्ञा इन दो महत्त्वपूर्ण क्रियाओं को जोड़ने वाले दिन विशिष्ट होने से उन्हें आक संधि कहा जाता होगा। समुद्देश से आगम अध्ययन परिपूर्ण होता है तथा अनुज्ञा से अन्य सुयोग्य को अध्ययन कराने का अधिकार मिलता है इस प्रकार ये दोनों क्रियाएँ आगम को आत्मस्थ करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। 145. आकसंधि के दिनों में योग में से बाहर नहीं निकल सकते हैं। 146. आकसंधि काल में यदि दिन गिरें तो, जितने दिन गिरते हैं उतने आयंबिल किये जाते हैं, बीच में नीवि नहीं होती है। 147. आचारांगसूत्र के सप्त सप्तमिका नामक अध्ययन की अनुज्ञा होने पर वह योगवाही 'आचारी' बनता है। यह आचारी संघाटक (संघट्टा ग्रहण करने वाला योगवाही) कहलाता है। इस आचारी मुनि को गोचरी-पानी या
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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