________________
138... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा दिन में, तीसरी नन्दी द्वितीय श्रुतस्कन्ध के उद्देशक दिन में, चौथी नन्दी द्वितीय श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा दिन में और पाँचवीं नन्दी अंगसूत्र की अनुज्ञा दिन में होती है। इस योगकाल में आकसंधि के तीन दिन होते हैं।
2. जिस योग में एक अंग और एक श्रुतस्कन्ध होता है वहाँ तीन नन्दी होती हैं- पहली नन्दी अंगसूत्र के उद्देशक दिन में, दूसरी नन्दी, श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा दिन में और तीसरी नन्दी अंगसूत्र की अनुज्ञा दिन में होती है। इस योग में आकसंधि के चार दिन होते हैं।
3. जिस आगमसूत्र में एक श्रुतस्कन्ध होता है उसमें दो नन्दी होती हैंपहली नन्दी श्रुतस्कन्ध के उद्देशक दिन में और दूसरी नन्दी श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा दिन में होती है। इस योग में आकसंधि के दो दिन होते हैं। पुनश्च जिस सूत्रयोग में पाँच नन्दी होती हैं वहाँ आकसन्धि के तीन दिन होते हैं। जिस सत्रयोग में तीन नन्दी होती हैं वहाँ आकसन्धि के चार दिन होते हैं तथा जिस सूत्र योग में दो नन्दी होती हैं वहाँ आकसन्धि के दो दिन होते हैं।34 योगवाहियों के लिए रात्रि अनुष्ठान सम्बन्धी सूचनाएँ
योगोद्वहन के रात्रिक अनुष्ठान के विषय में यह ज्ञातव्य है कि जिस प्रकार दिन में स्वाध्याय प्रस्थापना, कालग्रहण, स्वाध्याय प्रतिक्रमण और काल प्रतिक्रमण का अनुष्ठान सम्पन्न किया जाता है, रात्रि में भी उसी प्रकार
जानना चाहिए। • यदि अनुष्ठानकर्ता का स्वाध्याय दूषित हो जाये तो अन्य अधिकृत मुनि
उसे अनुष्ठान करवाएँ। रात्रि में जिस काल का अनुष्ठान किया गया हो, दूसरे दिन प्रभात में पवेयणा विधि करते समय गुरु के समक्ष रात्रि अनुष्ठान सम्बन्धी सब कुछ अनुक्रम से बतलाना चाहिए। जिस दिन योग में प्रवेश करें, उस दिन सन्ध्या को व्याघातिक काल ग्रहण
नहीं करना चाहिए। • यदि चार काल ग्रहण किये हों तो रात्रि के चारों प्रहरों में जागृत रहते हुए दिशाओं का अवलोकन करना चाहिए। यदि इसके विपरीत करते हैं तो सभी काल अशुद्ध हो जाते हैं, इसलिए चारों प्रहरों में जागरूक रहते हुए दिशावलोक करना चाहिए। फिर दूसरे दिन प्रभातकाल में अनुष्ठान सम्बन्धी क्रिया करनी चाहिए, तभी वे शुद्ध होते हैं।35