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स्वाध्याय-भाव चिकित्सा की प्रयोग विधि ...117 जैसे अग्नि में तपाये जाने पर सोने-चाँदी का मल उतर जाता है वैसे ही स्वाध्याय और ध्यान रूपी तप से पूर्वकृत कर्ममल नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रकारों ने स्वाध्याय को पंचमुखी दीपक की उपमा दी है। पंचमुखी दीपक की यह विशेषता है कि उसमें चार बाती चारों तरफ तथा एक बाती ऊर्ध्वमुखी होने से चारों दिशाओं में भी आलोक प्रसरित होता है और ऊपर भी। इस तरह दीपक के परिपार्श्व का सम्पूर्ण भाग प्रकाशवान हो उठता है। स्वाध्याय की भी यही विशेषता है कि यह जीवन के सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है यानी विवेक बुद्धि का दीपक प्रज्वलित कर जीवन को जगमगा देता है।
इस प्रकार स्वाध्याय धर्म ध्यान का प्रमुख आलम्बन एवं ज्ञान वृद्धि का मुख्य कारण है। अन्तस के ज्ञानदीप को प्रज्वलित करने के लिए स्वाध्याय आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। योगशिखोपनिषद्कार ने कहा है- जैसे लकड़ी में रही हई अग्नि बिना घर्षण के प्रकट नहीं होती, उसी प्रकार हमारे भीतर जो ज्ञान-दीपक विद्यमान है, स्वाध्याय के अभ्यास के बिना प्रदीप्त नहीं हो सकता।
वस्तुतया सद्ग्रन्थों के स्वाध्याय से प्राप्त धार्मिक संस्कार मन पर असर करते हैं। इससे व्यक्ति की भावना में परिवर्तन होता है। इसके सुप्रभाव से चोरलूटेरे-हत्यारे भी उन्मार्ग को छोड़कर सात्त्विक मार्ग पर अग्रसर हो जाते हैं। वर्तमान में सर्वोदयी कार्यकर्ताओं के प्रचार से चम्बल घाटी के कई अपराधी अपराध मुक्त जीवन यापित कर रहे हैं और गीता-रामायण आदि सद्ग्रन्थों का पाठ करते हुए शान्ति पूर्वक समय बिता रहे हैं। संदर्भ-सूची
1. (क) सुष्ठु, आ मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः। स्थानांग टीका . (ख) अध्ययनम् अध्याय:, शोभन: अध्याय: स्वाध्यायः। आवश्यक टीका (ग) सुष्ठ, आ मर्यादया-कालवेलापरिहारेण पौरुष्यपेक्षया सा अध्यायः स्वाध्यायः।
उद्धृत- अभिधानराजेन्द्रकोश
भा. 7, पृ. 280 धर्मसंग्रह अधिकार 3 2. सुयधम्मो सज्झायो.... सज्झातो नाम सामाइएमादी जाव दुवालसंगं गणिपिडग।
आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 7, 8 3. प्रवचनं श्रुतमित्यर्थस्तद्धर्मः स्वाध्यायः।
उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पृ. 584