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________________ वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप...35 कर रहे हैं, वाचना, पृच्छना आदि के लिए आने-जाने वाले मुनि संस्तारक को लात दे रहे हैं, अत: कल सुबह में भगवान महावीर से अनुज्ञा लेकर पुनः गृहवास में चला जाऊंगा। इस प्रकार एक सामान्य प्रसंग में यहाँ वाचना शब्द उल्लिखित है। प्रश्नव्याकरण आदि सत्रों में भी इस तरह का वर्णन देखा जाता है। जैसेबृहत्कल्पसूत्र में वाचना देने-लेने के योग्य-अयोग्य का निर्देश दिया गया है।63 व्यवहारसूत्र में दीक्षा पर्याय के अनुसार आगमों के अध्ययन का क्रम बतलाया गया है।64 निशीथसूत्र में अविधि पूर्वक वाचना दान के प्रायश्चित्त भी कहे गये हैं।65 उत्तराध्ययनसूत्र में वाचना योग्य शिष्य के लक्षण, दशवैकालिकसूत्र में श्रुत वाचना के उद्देश्य, नन्दीसूत्र8 में श्रुत ग्रहण विधि आदि का निरूपण है। इस प्रकार आगम साहित्य में चर्चित विषय का सामान्य वर्णन ही प्राप्त होता है। स्वरूपत: वाचना किस प्रकार दी जानी चाहिए ? वाचना की अनुज्ञा किस मुहूर्त में प्रदान करनी चाहिए ? वाचना के योग्य कौन ? आदि के सम्बन्ध में कोई भी निर्देश आगम साहित्य में प्राप्त नहीं होता है, केवल सामान्य वर्णन ही देखा जाता है। ____ यदि इस विवेच्य विधि के सम्बन्ध में आगमिक व्याख्या साहित्य का अवलोकन करते हैं तो व्यवहारभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य, निशीथभाष्य' आदि में वाचना विधि का सामान्य वर्णन उपलब्ध हो जाता है। टीका साहित्य में वाचना किस प्रकार दी जाए ? किसको दी जाए ? अयोग्य को वाचना देने से होने वाली हानियाँ आदि का भी अपेक्षित विवरण प्राप्त होता है। इससे सिद्ध है कि विक्रम की प्रथम शती के अनन्तर वाचना-विधि में क्रमश: विकास हुआ है। यदि मध्यकालीन साहित्य का आलोडन किया जाए तो उनमें सर्वप्रथम आचार्य हरिभद्रकृत पंचवस्तुक में प्रतिपाद्य विषय का पूर्वापेक्षा विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है। इसमें वाचना देने के योग्य कौन ? वाचना देने के अयोग्य कौन ? अयोग्य को वाचना देने से लगने वाले दोष ? अविधि पूर्वक वाचना देने के दोष, वाचना से होने वाले लाभ, वाचना विधि इत्यादि का सम्यक् वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ में वाचना ग्रहण के लिए उपसम्पदा ग्रहण करने का भी निर्देश किया गया है। वाचना सम्बन्धी कुछ आवश्यक कृत्य भी बतलाये गये हैं। वाचना मण्डली में अभ्युत्थान विधि का व्यवहार कब, किस प्रकार किया जाना
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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