SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बार-बार नहीं उठना चाहिए अपितु प्रयत्न पूर्वक सूत्रार्थ को धारण करना चाहिए। वाचना का निरन्तर श्रवण करने से शुभ परिणामों की तीव्रतर धारा बहती है परिणामतः अवधि आदि अतिशय ज्ञान उत्पन्न होने की सम्भावना भी बनती हैं।47 __ भाष्यकार ने वाचनादान के समय अभ्युत्थान आदि से होने वाले विपरीत फल का वर्णन करते हए यह भी कहा है कि जैसे आरोपणा प्रायश्चित्त के प्ररूपणा काल में विक्षेप होने पर उसका सम्यक् अवधारण नहीं हो पाता, वैसे ही वाचना दान के बीच में से अभ्युत्थान करने पर श्रुतोपयोग की विच्छिन्नता के कारण ज्ञानावरणीय कर्म की यथेच्छित निर्जरा नहीं हो पाती, अत: वाचना दान के मध्य ज्येष्ठ मुनि आदि के आने पर वन्दनादि कर्म नहीं करना चाहिए। ___किन्तु निम्न कारणों से अनुयोग काल में वन्दनादि कर्म किया जा सकता है- 1. अतिथि साधु के आने पर 2. प्रकरण विषय की समाप्ति पर 3. स्वाध्याय काल की सम्पन्नता पर 4. अध्ययन- उद्देशक- अंगश्रुतस्कन्ध की सम्पन्नता पर। • अर्थ की वाचना देते समय केवली, अवधिज्ञानी या मनःपर्यवज्ञानी आ जाए तो वाचनाचार्य को उनका अभ्युत्थान करना चाहिए। अर्थवाचक को अपने से अधिक ज्ञानी के आने पर वाचना करते हुए भी उठना चाहिए, जैसे दसपूर्वी को चौदहपूर्वी के आने पर, नवपूर्वी को दसपूर्वी के आने पर, कालिक-श्रुतधर को पूर्वधर के आने पर उठना चाहिए। यदि आगन्तुक समान श्रुत वाला हो और गुरु पद पर न हो तो नहीं उठना चाहिए।48 • सूत्र मण्डली में वाचनाचार्य युवा और स्वस्थ हो तो उनके बैठने हेतु आसन नहीं बिछाये और पट्टा आदि भी नहीं रखे। यदि वाचनाचार्य स्थविर, रोगी या आसन इच्छुक हो तो वैसा करें। इस प्रकार आसन बिछाने के सम्बन्ध में विकल्प है। आसन के परिमाण के विषय में भी विकल्प है जैसे- वाचनाचार्य एक, दो, तीन अथवा अधिकतम जितने कंबल परिमाण आसन पर बैठकर सुखपूर्वक वाचना दे सकते हो, उतने कंबल परिमाण का आसन बिछाए। • अर्थ मण्डली की विधि यह है कि जितने साधु अर्थ श्रवण करने वाले हों, वे सभी अपना-अपना आसन निषद्याकारक साधु को दें और वह बड़े छोटे के क्रम से या मण्डली क्रम से वाचनाग्राहियों के आसन बिछाये।49 • व्यवहारभाष्य के कथनानुसार जो प्रवर्तिनी शिष्याओं और प्रातीच्छिकों
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy