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________________ पदारोहण सम्बन्धी विधियों के रहस्य...261 • इसी के साथ आजकल दीक्षा, पदस्थापना आदि प्रसंगों में अन्य आडम्बर अधिक बढ़ गए है एवं मूल विधान गौण होते जा रहे हैं। लोगों की रुचि ऐसे कार्यक्रमों में अधिक होती है जो उन्हें समझ में आए एवं उनके मन के अनुकूल हो। धार्मिक अनुष्ठानों में उनकी रुचि नहीवत् ही होती है। साथ ही आज की Busy life style में लोगों के लिए अधिक समय निकालना भी नामुमकिन है अत: वर्तमान में नन्दीसूत्र का भाग विशेष ही सुनाया जाता है। यदि उपस्थित जन समुदाय की स्थिरता हो तो पूर्ण पाठ सुनाना चाहिए। दाएँ कान पर चन्दन लगाकर ही सूरिमन्त्र क्यों सुनाया जाता है? • सूरिमन्त्र एक विशिष्ट मन्त्र है और मन्त्रशक्ति का अपना अद्भुत प्रभाव होता है। इसके प्रत्येक पद में अनेक लब्धियाँ छिपी हुई है। इस मन्त्र साधना के बाद ही आचार्य की तद्प योग्यता एवं क्षमता प्रकट होती है और शासन प्रभावना में सहायक बनती है अत: इसकी महिमा अनन्त है। • इसे कान में श्रवण करवाने का एक कारण यह हो सकता है कि यदि यह मन्त्र सभी के समक्ष दिया जाए तो अयोग्य या कुटिल व्यक्ति द्वारा इसका दुरूपयोग किया जा सकता है और उससे मन्त्रशक्ति का प्रभाव कम हो सकता है इसलिए यह मन्त्र लिखित रूप में भी नहीं दिया जाता है। • दाहिना अंग शुभ माना गया है इसी के साथ यह वीरता का भी सूचक है। फिर सूरिमन्त्र एक उत्तम मन्त्र हैं अत: दाहिने अंग में श्रवण करवाया जाता है। कर्ण को चन्दन वेष्ठित करने पर चन्दन की शीतलता एवं सुगन्ध से कान के परमाणु अधिक पवित्र बनते है तथा वैसे गुणों की प्राप्ति होती है। कान सुनने का सशक्त माध्यम है। इससे व्यक्ति अच्छी और बुरी दोनों बाते सुनता है अत: सूरिमन्त्र श्रवण करवाने से पूर्व कर्ण शुद्धि की अपेक्षा से तथा अशुभ पुद्गलों के संहरण के लिए भी कान को चन्दन लेप से वेष्ठित किया जा सकता है। आचार्य पदस्थापना विधि के दौरान पूर्व आचार्य नूतन आचार्य को वन्दन क्यों करते हैं? आचार्य पदस्थापना की मुख्य विधि सम्पन्न होने के पश्चात पूर्वाचार्य नूतन आचार्य को वन्दन करके अव्यक्त रूप में कई सन्देश देना चाहते हैं। सर्वप्रथम तो संघ में यह सूचित करते हैं कि अब यह कोई सामान्य मुनि नहीं
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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