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________________ 260...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में • इसी तरह एक कंबल परिमाण का आसन देने के पीछे भी उनके पद आरूढ़ होने एवं समस्त श्रमणियों में उच्च पदस्थ होने का सूचन किया जाता है। • जिस प्रकार वरिष्ठ या सम्माननीय लोगों को सामान्य लोगों से ऊँचे आसन पर बिठाया जाता है वैसे महत्तरा एवं प्रवर्तिनी भी समस्त श्रमणी संघ का वहन करने एवं कई विशिष्ट गुणों एवं अधिकारों से युक्त होने के कारण उच्च आसन. पर शोभायमान होती है, अतः कंबल परिमाण आसन प्रदान किया जाता है। प्रश्न हो सकता है कि प्रवर्तिनी को दो कंबल परिमाण एवं महत्तरा को एक कंबल परिमाण आसन क्यों ? सम्भवतः पद की उच्चता दर्शाने एवं दोनों पदों अन्तर दिखाने के प्रयोजन से यह भेद हो सकता है, क्योंकि प्रवर्तिनी का कार्यभार एवं अधिकार महत्तरा से अधिक होता है। ज्ञान आदि की अपेक्षा भी प्रवर्तिनी महत्तरा से विशिष्ट हो सकती है इसलिए दो कंबल प्रमाण आसन दिया जाता है। पदस्थापना, व्रतारोपण, योगवहन आदि क्रियानुष्ठानों में नन्दीसूत्र सुनाने की परम्परा कब से ? नन्दी शब्द आनन्द या मंगल का सूचक है। इसी के साथ यह ज्ञान का प्रतिपादक भी है। दीक्षा, पदस्थापना आदि में उपस्थित ज्येष्ठ गुरु या पद दाता के द्वारा नन्दिसूत्र सुनाया जाता है। इसके पीछे निम्न प्रयोजन देखे जाते हैं• प्रथम हेतु यह है कि ज्ञानयुक्त क्रिया ही लौकिक एवं लोकोत्तर सुख देने में समर्थ है। गुरु · मुनि जीवन में ज्ञानार्जन एवं स्वाध्याय का विशेष महत्त्व है। आगमों में साधु को चार प्रहर स्वाध्याय के लिए कहा गया है। नन्दीसूत्र सुनाने के रूप में गुरु भगवन्त केवल नन्दीसूत्र का श्रवण ही नहीं करवाते, अपितु नूतन पदधारी या व्रतधारी के जीवन में सम्यक् ज्ञान का संचार भी करते हैं । • नन्दीसूत्र एक ऐसा आगम है जिसमें सभी आगमों का सारभूत उल्लेख है। पद दाता उनका रहस्य श्रोता के जीवन में उंडेलने का प्रयत्न करते हैं । वर्तमान में पूर्ण नन्दीसूत्र न सुनाकर उसका अंश विशेष सुनाया जाता है ऐसा क्यों ? • पूर्वकाल में स्मरण शक्ति तीव्र होने से मुनियों को आगम पाठ कण्ठस्थ होते थे अतः सुनाने में समय कम लगता था। वर्तमान में विषम काल के दुष्प्रभाव से क्रमश: स्मृति मन्द होने के कारण कण्ठाग्र प्रणाली कम हो गयी है।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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