SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 248...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में करने के बाद कोई गीतार्थ साध्वी नूतन प्रवर्त्तिनी से कहे कि - "हे आयें! तुम इस पद के अयोग्य हो अतः इस पद को छोड़ दो।” ऐसा कहने पर यदि नूतन प्रवर्त्तिनी उस पद को परित्यक्त कर दें तो वह दीक्षा छेद या तप रूप प्रायश्चित्त की पात्र नहीं होती है। यदि सहवर्त्तिनी साध्वियाँ उत्तरदायित्व के अनुसार अयोग्य को भी प्रवर्त्तिनी आदि पद छोड़ने के लिए न कहें तो वे सभी साध्वियाँ उक्त कारण से दीक्षा छेद या तप प्रायश्चित्त की पात्र होती हैं। सार रूप में कहा जाए तो आचार्य गच्छ के धर्मशासक होते हैं अतः मूल रूप से उनके निर्देशानुसार प्रवर्त्तिनी पद की नियुक्ति की जाती है, किन्तु प्रवर्त्तिनी आदि भी अन्य योग्य साध्वी को प्रवर्त्तिनी पद पर नियुक्त कर सकती हैं, ऐसी व्यवस्था भी है। यदि कोई अयोग्य साध्वी प्रवर्त्तिनी पद पर अधिष्ठित हो गयी हो, तो सहधर्मिणी साध्वियों को चाहिए कि वे उसे पद त्याग हेतु निवेदन करें। चूंकि अयोग्य प्रवर्त्तिनी के आश्रय में रहने से निश्रावर्ती साध्वियाँ प्रायश्चित्त की भागी होती हैं। प्रवर्त्तिनी पद पर प्रतिष्ठित साध्वी को भी चाहिए कि वह अयोग्य घोषित किये जाने पर अपने पद का त्याग कर दें, अन्यथा उसे उतने ही दिन का तप या छेद रूप प्रायश्चित्त आता है। प्रवर्त्तिनी पदस्थापना विधि का ऐतिहासिक अनुसंधान जैन धर्म में प्रवर्त्तिनी पद की व्यवस्था प्राचीनतम है। प्रवचनसारोद्धार आदि कई प्राचीन ग्रन्थों में चौबीस तीर्थङ्करों के शासनकाल की प्रवर्त्तिनियों के नामों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। जैसे अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर के धर्म संघ की प्रथम प्रवर्त्तिनी आर्य्या चन्दनबाला थी । यदि जैन परम्परा के प्राचीनतम आगम - साहित्य का अवलोकन करते हैं तो वहाँ व्यवहारसूत्र को छोड़कर अंग, उपांग, छेद, आवश्यक आदि किसी भी वर्ग शास्त्र में यह चर्चा नहीं मिलती है केवल नामोल्लेख मात्र प्राप्त होता है जैसेभगवतीसूत्र में वर्णन आता है कि किसी साध्वी ने आहार ग्रहण करते हुए अकृत्य स्थान का सेवन किया। उसने प्रवर्त्तिनी के पास आलोचना करने हेतु तत्काल कदम बढ़ाए। प्रवर्त्तिनी के पास पहुंचने से पूर्व ही वह प्रवर्त्तिनी वात आदि दोष के कारण मूक हो गयी। तब गौतम स्वामी प्रभु से प्रश्न करते हैं कि वह साध्वी आराधिका है या विराधिका ? परमात्मा महावीर कहते हैं- वह साध्वी
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy