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________________ प्रवर्तिनी पदस्थापना विधि का सर्वांगीण स्वरूप...247 कहने का आशय है कि प्रवर्तिनी दो साध्वियों को साथ में रखकर विचरण करे और तीन साध्वियों को साथ में रखकर चातुर्मास करे। इसी प्रकार गणावच्छेदिनी (श्रमणी का एक पद) तीन साध्वियों के साथ रहने पर विचरण करे और चार साध्वियों के साथ होने पर वर्षावास करे।18 __यहाँ ध्यातव्य है कि गणावच्छेदिनी प्रवर्तिनी की प्रमुख सहायिका होती है। इसका कार्यक्षेत्र गणावच्छेदक के समान विशाल होता है और यह प्रवर्तिनी की आज्ञा से साध्वियों की व्यवस्था, वैयावृत्य, प्रायश्चित्त आदि सभी कार्यों की देख-रेख करती हैं, अत: गणावच्छेदिनी के लिए साध्वियों की संख्या प्रवर्तिनी की तुलना में अधिक कही गयी है। ___इस वर्णन से यह तथ्य भी स्पष्ट हो जाता है कि सामान्य साध्वी भी अकेली विचरण नहीं कर सकती है, किन्तु दो साध्वियाँ सहवर्ती होकर विचरण कर सकती हैं या चातुर्मास कर सकती हैं, क्योंकि आगम में दो साध्वियों के स्वतन्त्र विचरण करने का निषेध तो नहीं है, किन्तु साम्प्रदायिक सामाचारियों के अनुसार दो साध्वियों का स्वतन्त्र विचरण एवं चातुर्मास करना निषिद्ध माना गया है। यद्यपि सेवा आदि के निमित्त एवं प्रवर्तिनी की आज्ञा से अपवाद मार्ग में दो साध्वियों का आना-जाना माना जाता है।19 प्रवर्तिनी के अधिकार एवं उसके अपवाद __जैनागमों में वर्तमान प्रवर्तिनी को यह अधिकार दिया गया है कि वह भावी प्रवर्तिनी का चयन कर प्रमुख साध्वियों के समक्ष उसे पद पर स्थापित करने सम्बन्धी निर्देश कर सकती है। जैसा कि व्यवहारसूत्र का पाठांश है20 - “रूग्ण प्रवर्तिनी किसी प्रमुख साध्वी से कहे कि - हे आर्ये! मेरे कालगत होने पर अमुक साध्वी को मेरे पद पर स्थापित करना।" ___यदि प्रवर्तिनी अनुमत साध्वी उस पद योग्य हो, तो ही उसे नूतन प्रवर्तिनी के रूप में स्थापित करना चाहिए। यदि वह प्रवर्तिनी पद के अनुरूप न हो, तो उसे स्थापित नहीं करना चाहिए। गीतार्थ साध्वी को भी यह अधिकार है कि यदि उसे प्रवर्तिनी सम्मत साध्वी पद के अनकल न लगे तो उसे स्थापित न करे। यदि समुदाय में अन्य कोई साध्वी प्रवर्तिनी पद के अनुरूप हो तो उसे स्थापित करें। कदाच समुदाय में अन्य कोई भी साध्वी उस पद के योग्य न हो तो प्रवर्तिनी निर्दिष्ट साध्वी को ही उस पद पर स्थापित करें। कदाच पद पर स्थापित
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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