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________________ 242...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में से प्रवर्तिनी बहुत से उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों का नैतिक दृष्टि से निर्वाह करती है। ___ प्रवर्तिनीपद की प्रमुख उपादेयता यह है कि वह आचार्य के उत्तरदायित्वों एवं आवश्यक क्रियाकलापों को पूर्ण करने में अपना सहयोग प्रदान करती है। साध्वी-समुदाय का सम्यक नेतृत्व करती है, शास्त्रज्ञाता होने से ज्ञानदान एवं शास्त्राभ्यास में सहयोग करती है। संघस्थ श्रमणियों की सुरक्षा एवं व्यवस्था का पूर्ण प्रबन्धन करती है तथा उनके द्वारा विधि-निषेधयुक्त नियमों का उल्लंघन किये जाने पर उचित प्रायश्चित्त देने की भी अधिकारी होती है। ___ भाष्यकार के मतानुसार अपने अधिकृत क्षेत्र में आगत अन्य प्रवर्तिनी को यथायोग्य आदर देना, भक्तपान की व्यवस्था करना एवं स्थानादि की पृच्छा करना भी प्रवर्तिनी का कार्य है। प्रवर्त्तिनी का प्रमुख कर्तव्य गच्छ या संघ में उत्पन्न कलह को शान्त करना भी है। श्रमणी-संघ में वैराग्यगर्भित मुमुक्षु आत्माओं को प्रव्रजित करने का गुरुतर कार्य भी प्रवर्तिनी सम्भाल सकती है। ___ व्यवहारभाष्य में कहा गया है कि प्रवर्तिनी स्वच्छन्दचारिणी साध्वी पर सदा अनुशासन रखती है। यहाँ स्वच्छन्दता से तात्पर्य पुरुष-सम्बन्धी कथा आदि करना, गृहस्थों को जादू-टोना अथवा मन्त्र-तन्त्र का प्रयोग बताना, कामोत्तेजक चेष्टा करना, शरीर और उपकरणों की विभूषा करना, रात्रि के प्रथम व अन्तिम प्रहर में स्वाध्याय न करना आदि है।10 ये क्रियाएँ संयम धर्म का विनाश करती हैं, अत: अणगार धर्म की पुष्टि एवं संवर्द्धन हेतु साध्वी समुदाय को प्रवर्तिनी के आदेश-निर्देश में ही रहना चाहिए, उसकी संयम-यात्रा के लिए यही श्रेयस्कारी है। प्रवर्तिनी पद की उपादेयता इस सन्दर्भ में भी स्वीकारी जा सकती है कि साध्वियों की मानसिक दोष-सम्बन्धी अनेक समस्याओं का आचार्य से निराकरण करवाना उचित नहीं होता। दूसरा कारण, आवश्यक कार्यों की अनुमति हेतु बार-बार मुनियों की वसति में जाना अनुचित है तथा शैक्ष, तरुण, वृद्ध आदि साध्वियों के द्वारा आचार्य के समक्ष वस्त्रादि की आवश्यकता का निवेदन करना भी कारण विशेष से शोभनीय नहीं है उन कार्यों में प्रवर्तिनी जैसी प्रौढ़ प्रज्ञावान साध्वी का होना अत्यन्त जरूरी है, क्योंकि प्रवर्तिनी गीतार्थ आदि गुणों से समृद्ध होने के कारण उचितोनुचित का निर्णय कर सकती है। परिस्थिति
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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