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________________ महत्तरापद स्थापना विधि का तात्त्विक स्वरूप...231 वासदान - फिर पदग्राही साध्वी खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर कहे"तुम्भे अम्हं पुव्वअज्जाचंदणाइनिवेसिय महयर-पवत्तिणीपयस्स अणुजाणावणियं नंदिकड्डावणियं वासनिक्खेवं करेह"- हे भगवन्! आपकी इच्छा हो, तो चन्दना आदि पूर्व आर्याओं द्वारा सेवित महत्तरापद या प्रवर्तिनीपद ग्रहण की अनुमति देने एवं नन्दी सुनाने के निमित्त वासचूर्ण का निक्षेप करें। तब गुरु भगवन्त पदग्राही साध्वी के मस्तक पर वासचूर्ण डालें। तदनन्तर गुरु पद ग्राही साध्वी को अपनी बायीं ओर बिठाकर जिनमें उच्चारण एवं अक्षर क्रमश: बढ़ते हुए हों ऐसी चार स्तुतियाँ एवं शान्तिनाथ, अम्बिकादेवी आदि की चौदह ऐसे कुल अठारह स्तुतियों द्वारा पूर्ववत देववन्दन करें। ____कायोत्सर्ग- फिर नूतन महत्तरा 'महत्तरापयअणुजाणावणियं काउस्सग्गं करेह'- महत्तरापद की अनुमति लेने के लिए कायोत्सर्ग करती हूँ ऐसा कहकर एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर (सागरवरगंभीरा तक) एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बालें। यह क्रिया गुरु और महत्तरा दोनों करें। नन्दीश्रवण - तत्पश्चात गुरु खड़े होकर तीन बार नमस्कार मन्त्र पूर्वक लघुनन्दी का पाठ बोलें - 'नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहाआभिणिबोहियनाणं, सुयनाणं, ओहिनाणं, मणपज्जवनाणं, केवलनाणं।' उसके बाद उस साध्वी को प्रकर्ष रूप से पद पर स्थापित करने हेतु 'इमीसे साहुणीए महत्तरापयस्स अणुण्णानंदी पयट्टइ' - इस साध्वी के लिए महत्तरापद की अनुज्ञा नन्दी प्रवृत्त होती है, ऐसा कहकर गुरु महाराज उस भावी महत्तरा के सिर पर वासक्षेप डालें। वासाभिमंत्रण - फिर गुरु आसनस्थ होकर गन्धचूर्ण को अभिमन्त्रित करें। फिर उसे उपस्थित संघ में वितरित कर समवसरणस्थ जिनप्रतिमा के चरणों पर उस गंध का क्षेपण करें। सप्त थोभवन्दन- 1. उसके बाद पदग्राही साध्वी खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करके कहे- "इच्छाकारेण तुन्भे अहं महत्तरापयं अणुजाणह" - हे भगवन्! आपकी इच्छा हो, तो मुझे महत्तरा पद की अनुज्ञा दें। गुरु कहें - 'अणुजाणामि' – मैं अनुज्ञा देता हूँ।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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