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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप... 217 28. आचारवान श्रुताधारः प्रायश्चित्तासनादिदः । आयापायकथी दोषा भाषकोऽस्रावकोऽपि च ॥ सन्तोषकारी साधूनां, निर्यापक इमेऽष्ट च। दिगम्बरवेष्यनुद्दिष्ट, भोजी शय्यासनीति च।। अराजभुक क्रियायुक्तो, व्रतवान ज्येष्ठ सद्गुणः । प्रतिक्रमी च षण्मासयोगी, तदद्विनिषद्यकः ॥ बोधपाहुड (अष्टपाहुड की टीका), गा. 2, पृ. 138-140. 29. अष्टावाचारवत्त्वाद्यास् तपांसि द्वादशस्थिते: । कल्पादशाऽऽवश्यकानि, षट् षट् त्रिंशद्गुणा गणेः ॥ 30. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, पृ. 262. 31. अभिधानराजेन्द्रकोश, भा. 2, पृ. 331. 32. दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 15 33. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 4/3/411 34. वही, 4/4/541 35. (क) वही, 4/3/422 (ख) व्यवहारसूत्र, 10/12 36. व्यवहारभाष्य, 4592-4593 37. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 10/13 38. महानिशीथसूत्र, 5 / पृ. 117 39. व्यवहारभाष्य, गा. 568 40. बृहत्कल्पभाष्य, गा. 941, 937, 942 41. जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश, भा. 1, पृ. 242, 468. 42. व्यवहारभाष्य, 1302, 1305, 1301 43. वही, 1581, 1583-85 अनगारधर्मामृत, 9/76 44. वही, 1305 45. दशवैकालिकसूत्र, 9/1/14 46. वही, 9/1/15 47. व्यवहारभाष्य, गा. 2001
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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