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________________ 210...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में गणधरवलयपूजा - सर्वप्रथम मुख्य आचार्य शुभमुहूर्त में शान्तिक कर्म और यथाशक्ति गणधर वलय की पूजा करें। उसके पश्चात उपाध्याय पद के समान चन्दन आदि के छींटे देकर विधिपूर्वक स्थापित पाट पर पदग्राही मुनि को बिठाएं। पाद सिंचन - फिर 'आचार्यपद प्रतिष्ठापन क्रियायां' इत्यादि पाठ का उच्चारण कर सिद्धभक्ति और आचार्यभक्ति पढ़ें। उसके बाद "ॐ हूं परम सुरभिद्रव्य सन्दर्भ परिमलगर्भ तीर्थाम्बुसम्पूर्णसुवर्णकलश पंचकतोयेन परिषेचयामीति स्वाहा।" यह मन्त्र पढ़कर पंचामृत कलश से भावी आचार्य के पैरों को अभिसिंचित करें। गुणारोपण - तदनन्तर पण्डिताचार्य (गृहस्थ विधिज्ञ) 'निर्वेद सौष्ठ' इत्यादि महर्षि स्तवन पढ़ते हुए आचार्य योग्य शिष्य के दोनों पाँवों का सम्यक प्रकार से स्पर्श करके गुणों का आरोपण करें। उसके पश्चात निम्न मन्त्र बोलते हुए आह्वान, स्थापन एवं सन्निधान करें"ओं हूं णमो आइरियाणं आचार्य परमेष्ठिन अत्र एहि एहि संवौषट्।" उसके पश्चात “ओं हूं णमो आइरियाणं धर्माचार्याधिपतये नमः" इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए उस पदग्राही शिष्य के दोनों पैरों पर कपूरयुक्त चन्दन का तिलक करें। उसके बाद शान्तिभक्ति और समाधिभक्ति करके गुरुभक्ति के द्वारा गुरु को प्रणाम कर बैठ जाएं। नूतन आचार्य उपासकों को आशीर्वाद प्रदान करें। आचार्यपदस्थापन का मन्त्र यह है - ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं अहम् हं सः आचार्याय नमः अथवा ॐ ह्रीं श्रीं अर्हम् हं सः आचार्याय नमः इसी तरह आलापक पाठ, विधिक्रम, आसनदान आदि के सम्बन्ध में पारस्परिक भिन्नताएँ हैं तो प्राभातिक कालग्रहण, स्वाध्याय प्रस्थापना, दो आसन प्रतिलेखन, नामकरण, हितशिक्षण आदि काफी कुछ विधियाँ परस्पर में समरूप भी हैं। जैन, बौद्ध एवं वैदिक परम्पराओं के सन्दर्भ में तुलना की जाए तो पूर्व वर्णन के आधार पर इतना सहजतया स्पष्ट हो जाता है कि जैनधर्म के श्वेताम्बर
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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