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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप... 199 अन्नत्थसूत्र बोलकर (सागरवरगम्भीरा तक) लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें और प्रकट में पुनः लोगस्ससूत्र कहें। उसके पश्चात शिष्य खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन कर कहे "इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं सत्तसइयं नंदिं सुणावेह' हे भगवन्! आप अपनी इच्छा से मुझे सात सौ श्लोक परिमाण नन्दी पाठ सुनाएं। 148 तब आचार्य खड़े होकर एवं तीन बार नमस्कारमन्त्र का स्मरण करके, 'नन्दी' नाम के आगमसूत्र पर वासचूर्ण का निक्षेप करें। तदनन्तर गुरु स्वयं नन्दीपाठ का उच्चारण करें अथवा अन्य शिष्य ऊर्ध्वस्थित होकर एवं मुख के आगे मुखवस्त्रिका धारण कर उपयोगपूर्वक नन्दीपाठ सुनाएं। पदग्राही शिष्य भी खड़े हुए दोनों हाथ जोड़कर, मुख के आगे मुखवस्त्रिका धारण कर एवं एकाग्रचित्त होकर नन्दीपाठ सुनें। वासाभिमन्त्रण नन्दीपाठ पूर्ण होने के पश्चात आचार्य सूरिमन्त्र एवं मुद्राओं के द्वारा सुगन्धितचूर्ण एवं अक्षत को अभिमन्त्रित करें। उसके बाद गुरु भगवन्त मूलनायक प्रतिमा पर वासचूर्ण का निक्षेप करें, फिर वहीं खड़े होकर जाप करें। उसके बाद समवसरण (नन्दी रचना) के समीप आकर चौमुखी (चार) प्रतिमाओं पर वासचूर्ण का क्षेपण करें। तदनन्तर अभिमन्त्रित वास - अक्षत को साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ में वितरित करें। अनुज्ञा 1. तदनन्तर शिष्य खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर कहें - "इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं दव्व-गुण- पज्जवेहिं अणुओगं अणुजाणेह" हे भगवन्! आपकी इच्छा हो, तो मुझे द्रव्य-गुण- पर्यायों के द्वारा अनुयोग (सूत्रार्थ का विस्तृत प्रतिपादन करने) की अनुज्ञा दें। गुरु कहे - " अहं एयस्स दव्व-गुण- पज्जवेहिं खमासमणाणं हत्थेणं अणुओगं अणुजाणामि" मैं इस मुनि के लिए गुरु परम्परा से प्राप्त द्रव्य-गुणपर्यायों के द्वारा अनुयोग की आज्ञा देता हूँ। 2. फिर शिष्य दूसरा खमासमण देकर कहे "इच्छाकारेण तुब्भेहिं अम्हं दव्व-गुण- पज्जवेहिं अणुओगो अणुण्णाओ ?" हे भगवन्! क्या आपकी इच्छापूर्वक मुझे द्रव्य-गुण- पर्यायों द्वारा अनुयोग (सूत्रार्थ प्रतिपादन) की अनुज्ञा दी गयी है ? इस प्रकार शिष्य के
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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