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164...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ___ आचार्यपद का सामाजिक महत्त्व इस प्रकार आंका जा सकता है कि वे अपनी अतुल साधनाबल, मनोबल एवं तपोबल के माध्यम से एक विधेयात्मक ऊर्जा का निर्माण करते हैं। अपनी मधुर एवं प्रभावी वाणी से कई जीवों को प्रतिबोध देकर संयम मार्ग पर लाते हैं, तो कई लोगों को श्रेष्ठ श्रावक धर्म धारण करवाते हैं। संस्कृति का स्थिरीकरण करते हुए श्रुत संवर्धन, चैत्य निर्माण, प्राचीन ग्रन्थ आदि के संरक्षण का कार्य करवाते हैं तथा आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना भी करते हैं। आचार-विचार एवं व्यवहार तीनों का उदात्तीकरण करते हुए उत्तम समाज एवं संघ का निर्माण करते हैं। इसी तरह कई प्रकार से सामाजिक विकास एवं व्यवस्थापन में आचार्य पद का योगदान प्राप्त हो सकता है।
प्रबन्धन के क्षेत्र में आचार्यपद एक महत्त्वपूर्ण दिशाबोधक हो सकता है। इसके द्वारा इन्द्रिय प्रबन्धन, समाज प्रबन्धन, स्व प्रबन्धन आदि कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त होता है।
यदि व्यक्तिगत स्तर पर चिंतन किया जाए तो आचार्य जिस प्रकार सामुदायिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी स्वयं में रमण करते हैं। अन्य के प्रति अपवाद मार्ग का निरूपण करते हुए भी स्वयं उत्कृष्ट मार्ग का अनुसरण करते हैं। वैसे ही साधारण व्यक्ति स्वयं को हर स्थिति में Adjust करते हुए अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक रहकर जीवन के हर क्षण का उपयोग एवं Management कर सकता है। ___ आचार्य स्वयं साधु जीवन की नियमावली का पालन करते हुए समस्त श्रमण एवं श्रमणी संघ को उसका पालन कठोरता से करवाते हैं। स्वभाव में ऋजुता, मधुरता, निर्दम्भता, गम्भीरता आदि गुणों को धारण किए होने से समुदाय, गच्छ आदि का सम्यक संचालन कर सकते हैं तथा समाचारी का पूर्ण ज्ञान होने एवं परिस्थिति अनुसार निर्णय करने में सक्षम होते है। वह उत्सर्ग और अपवाद मार्ग का ज्ञान रखते हुए देश, काल और परिस्थिति के अनुसार धर्म मार्ग का निरूपण करते हैं। इसी तरह प्राचीन परम्पराओं का एवं सामाजिक रीति-रिवाजों का निरूपण भी परिस्थिति अनुसार करते हुए रूढ़िवादिता के नाम पर फैल रहे सामाजिक वैमनस्य एवं साम्प्रदायिक द्वन्द्वों को नियन्त्रित कर समाज की शक्ति का संचय एवं समाज के विविध वर्गों में समन्वय स्थापित कर सकते