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________________ 134...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में एवं मंगल हेतु नन्दीसूत्र या उसका कुछ भाग सुनाने की परिपाटी है। इस विधिप्रक्रिया में जैनाचार्यों के भिन्न-भिन्न मत हैं। सामाचारीसंग्रह में आचार्य पदस्थापना के समान नन्दी क्रिया करने का उल्लेख है। विधिमार्गप्रपा में वाचनाचार्य पदस्थापना के समान एक बार लघुनन्दी पाठ सुनाने का सूचन है। आचारदिनकर में बृहद् नन्दी के स्थान पर तीन बार लघुनन्दी का पाठ कहने का संकेत है। प्राचीनसामाचारी एवं सुबोधासामाचारी में नन्दीपाठ सुनाने का निषेध है यद्यपि लघुनन्दी का नियम होना चाहिए। तिलकाचार्यसामाचारी में इस विषयक कुछ भी नहीं कहा गया है। मन्त्रश्रवण विधि की अपेक्षा - पूर्व परम्परा से उपाध्याय योग्य शिष्य को अनुज्ञा के दिन (शासन प्रभावनार्थ) मन्त्र सुनाया जाता है। इस विधि के सम्बन्ध में सामाचारी ग्रन्थों का प्रायः एक मत है। अतएव सामाचारीसंग्रह आदि ग्रन्थों के अनुसार नूतन उपाध्याय को तीन बार वर्धमानविद्या मन्त्र सुनाया जाता है और वह मन्त्र सभी में समान ही है। मन्त्रसाधना विधि की अपेक्षा - प्राचीनसामाचारी, 87 सुबोधासामाचारी, 88 तिलकाचार्यसामाचारी89 एवं विधिमार्गप्रपा में वर्धमानविद्या मन्त्र को एक उपवास पूर्वक हजार जाप करके सिद्ध करने का उल्लेख है। आचारदिनकर 1 में इस मन्त्र साधना का तत्सम्बन्धी विधि में कोई निर्देश नहीं है जबकि सामाचारीसंग्रह 2 में जाप विधि के साथ-साथ जाप दिन का भी उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि भगवान महावीर के जन्म नक्षत्र के दिन उपवास सहित एक आसन में बैठकर तथा समाधि एवं शुक्लध्यान के भावों में निमग्न होकर हजार बार जाप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है। तिलकाचार्य ने यह भी सूचित किया है कि उपाध्याय इस मन्त्र को सिद्ध करके वासचूर्ण इसी मन्त्र से अभिमन्त्रित करें और वही शिष्यों के लिए प्रदान करें। विद्यामण्डलपट्ट की अपेक्षा- उपाध्याय पद को प्रभावशाली एवं शासन हितावही बनाने के प्रयोजन से नूतन उपाध्याय को वर्द्धमानविद्या मण्डलपट्ट दिया जाता है। इस यन्त्रपट्ट में साधना योग्य मन्त्रों एवं सम्यक्त्वी देवी - देवताओं के नाम अंकित रहते हैं । उपाध्याय द्वारा इसे सिद्ध किया जाता है। आचारदिनकर के अनुसार उपाध्याय को चार द्वार वाला वर्द्धमानविद्यापट्ट
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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