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उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप...123
वाचनाचार्य पदस्थापना के समान बतलाया है। साथ ही तदयोग्य कृत्यों का सूचन भी किया है।49 ___ आचारदिनकर के अनुसार आचार्यपद हेतु निर्दिष्ट मुहूर्त के उपस्थित होने पर उपाध्याय पद की अनुज्ञा करनी चाहिए, क्योंकि इसमें उपाध्याय पदस्थापना की विधि आचार्य पदस्थापना के समान कही गई है।50
इस प्रकार उपाध्याय पद के लिए शुभ मुहर्त आदि के सन्दर्भ एवं आवश्यक सामग्री प्राप्त हो जाती है। उपाध्याय पद की आराधना से होने वाले लाभ
उपाध्याय पद की आराधना, भक्ति एवं विनय से जीव उपाधि रहित होता है, स्वाध्याय में एकाग्रचित्त बनता है, श्रुतज्ञान की प्राप्ति होती है, संशय आदि का निवारण होता है, आत्मा में शीतलता की अनुभूति होती है, श्रुतमद नष्ट होता है एवं अस्खलित वाणी की प्राप्ति होती है। ज्ञान प्राप्ति से आत्मा अकार्य से निवृत्त होती है फलत: मोक्ष की प्राप्ति होती है।51 उपाध्याय पद का वर्ण हरा क्यों? __जैन विचारकों ने उपाध्याय का हरा वर्ण बतलाया है। इसका रहस्य यह है कि उपाध्याय पाठक कहलाते हैं। साधु-साध्वियों के अध्यापन कार्य की महत्त्वपूर्ण जवाबदारी का निर्वहन करते हैं। अत: जिस प्रकार किसी व्यक्ति के आंखों का ऑपरेशन करने के बाद उसकी आंख पर हरे रंग की पट्टी बांध दी जाती है और उन्हें कहा जाता है कि तुम हरे वृक्षों को देखों, हरे रंग के चित्रों को देखों, चूंकि हरा रंग नेत्र ज्योति को बढ़ाने में प्रबल निमित्त होता है उसी प्रकार उपाध्याय ज्ञान रूपी नेत्र प्रदान करते हैं, इसलिए उन्हें हरे रंग की उपमा दी है।
दूसरा हेतु यह है कि जिस प्रकार वृक्ष के पत्तों की छाया में पथिक को आराम मिलता है, उसी प्रकार धर्म रूपी वृक्ष के पत्ते समान उपाध्याय भगवंत के सान्निध्य में संसार के ताप से संतप्त आत्मा को परम शांति मिलती है अतः उनका हरे वर्ण से ध्यान किया जाता है।
एक कारण यह माना जाता है कि जैसे मंत्र शास्त्र में उपद्रव निवारण के लिए हरे वर्ण को श्रेष्ठ माना है वैसे ही उपाध्याय भगवंत ज्ञान मार्ग में आने वाले विघ्नों को दूर करने वाले होने से उनका ध्यान हरे वर्ण से करते हैं।