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________________ उपाध्याय पदस्थापना विधि का वैज्ञानिक स्वरूप... 121 आचार्य - उपाध्याय को वर्षावास में एक साधु के साथ रहना नहीं कल्पता है, इस समय न्यूनतम दो साधुओं के साथ (कुल तीन साधु) रह सकते हैं। 45 इस आचारसंहिता के अनुसार यह निर्णीत होता है कि उक्त पदवीधर कभी भी अकेले विचरण नहीं कर सकते हैं और एकाकी चातुर्मास भी नहीं कर सकते हैं, इन्हें कम से कम एक या अनेक साधुओं को साथ में रखना आवश्यक होता है। ज्ञातव्य है कि व्यवहारसूत्र में एक या दो साधुओं के साथ रहने का जो विधान किया गया है उस निर्दिष्ट संख्या से अधिक साधुओं के रहने का निषेध नहीं समझना चाहिए। स्थान आदि की सुविधानुसार अधिक मुनि भी साथ रह सकते हैं किन्तु अधिक संख्या में साथ रहने पर संयम की क्षति अर्थात एषणा समिति एवं परिष्ठापनिका समिति आदि भंग होती हो तो अल्प संख्या में विचरण करना चाहिए। 46 आगमिक व्याख्या साहित्य में आचार्य - उपाध्याय को निम्न कारणों से दो मुनियों के साथ रहने का भी विधान बतलाया गया है47 1. आचार्य और उपाध्याय वज्रऋषभनाराच संहननधारी और वज्र की कीलिका के समान धृति सम्पन्न हों। 2. बृहद् गच्छ में रहते हुए नवीन या गृहीत सूत्र या अर्थ के स्मरण में व्याघात होता हो, तो एक या दो साधु के साथ में ही रहें। व्यवहारभाष्य में आचार्य को अनेक साधुओं के साथ रहने का निषेध भी किया गया है। भाष्यकार ने इसके बाधक कारण बतलाते हुए कहा है- 48 • उपदेश - यदि आचार्य लब्धिसम्पन्न एवं धर्मकथा वाचक हों, तो उनके पास श्रोताओं का जमघट रहता है, महर्द्धिक राजा आदि उनके पास आते हैं। इस स्थिति में अन्य साधु उच्चारणपूर्वक सूत्र - अर्थ का परावर्तन नहीं कर सकते अतः ज्ञानादि की विशिष्ट आराधना हेतु शिष्यों को अल्प संख्या में रहना चाहिए। • आवश्यकी - नैषेधिकी समुदाय में अनेक साधु हों तो वे वसति से बाहर जाते समय ‘आवस्सही' तथा वसति में प्रवेश करते समय 'निसीहि' का उच्चारण करते हैं। इस मर्यादा का निरीक्षण भी आवश्यक है। बार-बार याद दिलाए बिना सामाचारी का सम्यक निर्वाह कठिन हो जाता है। -
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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